भारत सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में बताया है कि भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. अत्याधिक कुपोषित बच्चों की सूची में महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शीर्ष पर हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ये जानकारी आरटीआई के जवाब में दी है.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का अनुमान है कि इनमें से 17.6 लाख बच्चे तीव्र कुपोषित हैं जबकि 15.5 लाख बच्चे मध्यम तीव्र कुपोषित हैं. मंत्रालय के मुताबिक कुल 33,23,322 कुपोषित बच्चो का आंकड़ा 34 प्रांतों और केंद्र शाषित प्रदेशों के डाटा के आधार पर है.
तीव्र कुपोषित बच्चों की संख्या में नवंबर 2020 से अक्तूबर 2021 के बीच 91 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2020 में अत्याधिक तीव्र कुपोषित बच्चों की संख्या 9 लाख 27 हज़ार थी जबकि अब ये 17.6 लाख है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जिन बच्चों का वज़न बहुत कम होता है और ऊपरी बाहों की परिधि 115 मिलीमीटर से कम होती है उन्हें अत्याधिक तीव्र कुपोषित माना जाता है. जिन बच्चों में पोषण ओएडेमा (शोफ) होता है उन्हें भी अत्याधिक कुपोषित माना जाता है. जिन बच्चों की ऊपरी बाहों की परिधि 115 से 125 मिलीमीटर के बीच होती है उन्हें मध्यम तीव्र कुपोषित माना जाता है.
अत्याधिक तीव्र कुपोषण और मध्यम तीव्र कुपोषण का बच्चों की सेहत पर नकारात्मक असर होता है. अत्याधिक कुपोषित बच्चों का वज़न लंबाई की तुलना में बेहद कम होता है और उनके बीमार पड़ने पर मरने की आशंका 9 गुणा अधिक होती है.
पोषण ट्रैकर के डाटा के मुताबिक सर्वाधिक कुपोषित बच्चे महाराष्ट्र में हैं. यहां 6,16,772 बच्चे कुपोषित दर्ज किए गए हैं. वहीं बिहार में 4,75,824 बच्चे कुपोषित है जबकि गुजरात में 3,20,465 बच्चे कुपोषित हैं.
कुपोषित बच्चों की संख्या पर टिप्पणी करते हुए बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (सीआरवाई) की सीईओ पूजा मारवाहा ने कहा कि कोविड महामारी की वजह से सभी सामाजिक-आर्थिक सूचकांक नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं और बीते एक दशक में जो प्रगति हुई है उस पर ख़तरा मंडरा रहा है.
स्कूल बंद होने की वजह से कई स्थानों पर मिड डे मील जैसी पोषण योजनाएं भी प्रभावित हुई हैं जिनका असर भी बच्चों पर हुआ है.
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