वर्ष 2021 मे चौथे बाघ की मौत, चार महीने में चार मौत
वन्य जीव विशेषज्ञ चिकित्सक की कमी
वन राज्य मंत्री की जिले के विकास अवरूद्ध करने की घोषणा
Imaginary pictureउमरिया:- बांधवगढ टाईगर रिजर्व में एक और बाघिन की मौत हो गयी। वर्ष 2021 में बीटीआर में बाघों की यह चौथी मौत है। मात्र 4 वर्षीय मादा बाघ ने 4-5 दिन पहले से खाना छोड दिया था। लेकिन उसके उपचार में हुई लापरवाही ने बाघिन की मौत के हवाले कर दिया। लगातार हो रही बाघों की मौत के बीच में वन राज्य मंत्री कुंवर विजय शाह का यह फरमान कि बाघों को दूसरे जिले में शिफट किया जायेगा। वन्य जीव प्रेमियों के लिए मादा बाघ की मौत की खबर और बाघों को दूसरे जिले में शिफट करना किसी बुरे सपने से कम नहीं हैं। घटना की जानकारी फैलते हीे हमेशा की तरह प्रबन्धन के आला अधिकारियों ने अपने फोन को आउट आफ रिच कर लिया। विगत दो सालों में ही बांधवगढ क्षेत्र में एक दर्जन से ज्यादा बाघों की मौत हो चुकी है। उसमें बाघों की मौत कारण अप्राकृतिक रूप से मौत होना ज्यादा है। यह बात तब वन्यजीव प्रेमियों और अखरती है, जब मौत का कारण प्राकृतिक ना होकर प्रबन्धन की लापरवाही हो। विगत दिनों लगी आग की समीक्षा करने पहुंचे वन्य राज्य मंत्री कुंवर विजय शाह की बाघों को शिफट करने की घोषणा तो जंगल में लगी आग में घी डालने का काम कर रही है।
नहीं है वन्य जीव विशेषज्ञ चिकित्सक:- नेशनल पार्क के लिए मात्र एक चिकत्सिक Doctor Nitin Gupta विगत 12 सालों से पदस्थ है। डा नितिन गुप्ता मात्र साधारण vetnary डाक्टर हैं, जिन्होंने ले देकर देहरादून से वन्य प्राणियों से सम्बन्धित एक डिप्लोमा किया है। जब भी पार्क प्रबन्धन को यह महसूस होता है कि वन्य जीवों के लिए खतरा ज्यादा है, तो मजबूरन उन्हें जबलपुर से वन्य प्राणी विशेषज्ञों को बुलाना पडता है। लेकिन अक्सर प्रबन्धन पार्क में पदस्थ डाक्टर के उपर भरोसा कर जाते है। ऐसे में प्रबन्धन और वन्यजीव प्रेमियों के लिए यह समय बहुत खराब अनुभव वाला साबित होता है। कई हाथियों की मौत हरपीज वायरस से हो चुकी है।
महीने में दूसरी मौत:- एक महीने से कम समय में बाघ की दूसरी मौत अपने आप में एक सवाल खडे करती है। मानपुर क्षेत्र में पाये बाघ के शव की मौत कारण इन्हीं डाक्टर ने अज्ञात बताया था। वहीं अब वनदेही क्षेत्र में हुए दूसरे बाघ की मौत का कारण प्रबन्धन के द्वारा क्या बताया जाता है। वनदेही क्षेत्र की मादा बाघिन की मौत का प्राथमिक कारण 4 - 5 दिनों पहले खाना खाना छोडना हो सकता है। लेकिन सवाल यही है ऐसा क्यों हुआ। वन्य प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार जब जंगल के प्राणी जब खाना छोडते हैं, तब वे स्वस्थ्य हो जाते हैं। ऐसे में मात्र 4 साल की बाघिन की अस्वाभाविक मौत हो जाना क्या दर्शा रहा है।
बाघों की मौत के क्या हो सकते हैं कारण:- डेढ माह पहले ही खितौली से शुरू होती हुई आग ने ताला मगधी वन परिक्षेत्रांे में तांडव मचाया था। लेकिन प्रबन्धन और वनराज्य मंत्री ने उस समय जंगल में लगी आग से नुकसान मात्र एक से सवा प्रतिशत जंगल जलना बताया था। साथ ही उन्होंने यह दावा भी किया था कि उस आग में किसी बडे वन्य जीव को नुकसान नहीं पहुंचा है। एक सप्ताह पहले मानपुर क्षेत्र में जिस बाघ को दो से दिन पुराना और सडा हुआ शव बताया था, और उसकी मौत का कारण भी डा नितिन गुप्ता ने अज्ञात बताया था। मतलब उन्हें यह पता नहीं चल सका, कि बाघ की मौत का क्या कारण है। वन्य जीव प्रेमियों की माने तो उस आग की तपिश अभी जंगल में है। उसी आग के कारण ही धीरे -धीरे बाघों की मौत के साथ अन्य वन्य प्राणियों की मौत की खबर भी मिल रही है।
करेला नीम चढी घोषणा:- बांधवगढ टाईगर रिजर्व में लगातार कोई ना कोई ऐसी घटना घट रही जिसके दुष्परिणाम जिले वासियों को भोगने पड रहे है। ऐसे में जब जंगल में आग लग गयी हो ,वन राज्य मंत्री जी दूसरे जिलों में बाघ को शिफट करने की बात कर रहे हैं। वह भी बाघों की प्राकृतिक रहवास की कमी के नाम पर। जबकि हकीकत यह है कि लगातार बाघों की मौतों के कारण यहां गिनेचुने बाघ ही बचे है। इस पर भी अपनी राजनीति चमकाने के लिए उमरिया जिले के विकास को अवरूद्ध करने की घोषणा भी कर दी गयी है। जिले की आर्थिक स्थिति का आधार हीे बांधवगढ है, और बाघ इसकी शान है। जागरूक नागरिकों की माने तो गिने चुने बाघों को शिफट करने के नाम पर जिले की पहचान खत्म करने की कोशिश हो रही है, और पूरा विपक्ष अपना कटमनी प्राप्त करके ही संतोष कर रहा है। जंगल में लगी आग तो बुझ चुकी है लेकिन इस आग के कारण जो जिले वासियों को परेशान हो रही है। वह परेशानी और मुश्किलें कब समाप्त होगी , शायद जब जिले की पहचान खत्म होगी तब !
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