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चीन की मोबाइल कंपनियों को जबरदस्त चोट , सेमी कंडक्टर के लाले पड़ेंगे


चीन की टेलीकॉम इंडस्ट्री को जबदस्त झटका. Semiconductor  Import is Getting Blocked

5G और 6G तकनीक पर सवार होकर वर्ष 2030 तक डिज‍िटल दुनिया में राज करने के चीनी सपने को दोहरा झटका लगा है। चीन के विस्‍तारवादी नीतियों और संदिग्‍ध गतिविधियों को देखते हुए एक तरफ जहां दुनिया उससे किनारा कर रही है, वहीं उसे अत्‍याधुनिक सेमीकंडक्‍टर के लाले पड़ गए हैं। सेमीकंडक्‍टर के जरुरी कच्‍चे माल पर अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का पूरा नियंत्रण है। इससे चीन की मुश्किल बहुत बड़ गई है।

चीन ने भले ही 5G तकनीक पर महारत हासिल कर ली हो लेकिन इसके लिए बेहद जरूरी सेमीकंडक्‍टर के लिए उसे अभी अमेरिका की कृपा पर निर्भर रहना होगा। चीन लंबे समय से सेमीकंडक्‍टर बनाना चाहता है लेकिन उसे अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। उसकी सेमी कंडक्‍टर तकनीक में कई बड़ी कमियां हैं जिसकी वजह से उसे इसका आयात करना मजबूरी है।
ब्रिटिश अखबार टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी अब बिना इन चिप और उसके लिए जरूरी इको सिस्‍टम के दुनिया में 5G तकनीक को लेकर दबदबा नहीं कायम कर पाएगी। यही नहीं वह अब दूरसंचार तकनीक और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भी आगे नहीं बढ़ पाएगी। चीन के राष्‍ट्रपति शी चिनफ‍िंग ने मास्‍टर प्‍लान बनाया है कि वर्ष 2030 तक इंटरनेट और उससे जुड़ी चीजों को नियंत्रित करने का सपना खटाई में पड़ता दिख रहा है।
टीएसएमसी को हुवावे से ऑर्डर लेना बंद करना पड़ा
शी चिनफिंग के इस सपने के टूटने के पीछे सबसे बड़ी वजह अमेरिका है। अमेरिका ने इस साल मई महीने में अपनी ताकत का इस्‍तेमाल किया। इससे दुनिया की बड़ी चिप निर्माता कंपनी ताइवान की टीएसएमसी को चीनी आध‍िपत्‍य का प्रतीक कही जा रही हुवावे से ऑर्डर लेना बंद करना पड़ा है। अब बिना चिप के हुवावे के लिए काम करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।

ताइवान की कंपनी के इस कदम से हुवावे को बड़ा झटका लगा है। हुवावे ताइवानी कंपनी की दूसरी सबसे बड़ी कस्‍टमर थी। हुवावे दुनिया की सबसे बड़ी टेलिकॉम उपकरण निर्माता और दूसरी सबसे बड़ी स्‍मार्टफोन निर्माता कंपनी है। हुवावे अपने चिप के लिए ताइवानी कंपनी पर बुरी तरह से निर्भर थी। हुवावे के सभी अच्‍छे फोन में ताइवानी कंपनी के चिप लगे हुए हैं। हुवावे अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद ताइवानी कंपनी के बल पर अपना काम कर रही थी। ताइवानी कंपनी ने हुवावे से ऐसे समय पर किनारा किया है जब दुनियाभर में कई देश 5जी को लेकर हुवावे से किनारे कर रहे हैं।

Could Taiwan Semiconductor and Samsung Electronics get caught in the crossfire as the U.S. escalates its tech cold war against China? That’s a poignant question for investors, as the Asian semiconductor giants are the No. 3 and 4 companies in global emerging market indices.

Attempts to choke off China’s advanced technological oxygen will be largely doomed without involving these neutral superpowers. Taiwan Semi (ticker: TSM) dominates the global market for ultrathin circuits that run the most advanced smartphones, and the smartest of the smart chips needed for 5G telephony and the burgeoning internet cloud. Samsung Electronics (005930.Korea) and its smaller Korean compatriot, SK Hynix (000660.Korea), supply about 70% of the world’s memory chips, says James Lim, head of Korea research at Dalton Investments.

The U.S. Commerce Department lately nodded to this reality. U.S. companies already need case-by-case licenses to sell directly to Huawei Technologies, the Chinese telecom colossus and bete noire of Washington trade warriors. On May 15, Commerce extended that net to semiconductors “that are the direct product of certain U.S. software and technology.”

The proposed regulation seems most squarely targeted at Taiwan Semi, which depends on U.S. equipment to manufacture semiconductors that are sold on to Huawei, its second-biggest customer after Apple (AAPL).

“Chip-making technology is dominated by the U.S., while assembly is concentrated in China,” says Jeff Pu, head of tech research at GF Securities. “The Taiwan supply chain is pretty much in the middle.” But investors are not acting like Taiwan Semiconductor is in trouble. The stock has climbed 9% since Commerce’s demarche. Market reality will override politics and keep the company selling on all continents, predicts Mehdi Hosseini, senior equity analyst at Susquehanna International Group. Taiwan Semi’s huge R&D investments depend on U.S. and Chinese customers effectively splitting the cost. “We’re going to shoot ourselves in the foot and end up paying $2,000 to $3,000 for an iPhone,” he says.

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