वह इलाका जहां चलते हैं पत्थर
डेथ वैली या मौत की घाटी में रेसट्रैक प्लाया नाम का एरिया है जहां पहले कभी झील हुआ करती थी। अब वह झील सुख गई है और पूरी इलाका समतल जमीन है जो पत्थरों के खिसकने के लिए बहुत उपयुक्त है।
(फोटो: साभार Pinterest)
पहली बार कब पता चला
वहां पत्थर चलते हैं, इसका पता 1948 में पहली बार चला। पत्थरों के आगे बढ़ने का निशान वहां जमीन पर जमी हुई धूल पर पड़ जाता है। हाल ही में वहां वैज्ञानिकों ने कुछ पत्थरों में जीपीएस ट्रैकर लगा दिए ताकि उनकी गतिविधि पर नजर रहे।
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तरह-तरह की बातें
किसी ने चट्टान को आगे की ओर खिसकते नहीं देखा है। ऐसे में लोगों के बीच इसको लेकर तरह-तरह की धारणाएं पाई जाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि एलियंस की वजह से ऐसा होता है तो कुछ मैग्नेटिक फील्ड को इसके लिए जिम्मेदार करार देते हैं।
वैज्ञानिक थ्योरी
मौत की घाटी में घूमने वाले पत्थरों के रहस्य को सुलझाने में वैज्ञानिक दशकों से लगे हुए हैं। कुछ का मानना है कि धूल के बवंडर की वजह से पत्थर आगे की ओर बढ़ते हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इस विशालकाय झील के इलाके में अकसर काफी तेज-तेज हवा बहती है। उन हवाओं की वजह से ही पत्थर आगे की ओर बढ़ता है। लेकिन इन थ्योरी को खारिज कर दिया गया है जिस वजह से वैज्ञानिक कोई संतोषजनक थ्योरी नहीं दे सके।
लॉरेंज की थ्योरी
(फोटो: साभार Pinterest)
मौत की घाटी को भी जान लीजिए
मौत की घाटी का तापमान पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा 56.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो गिनेस बुक ऑफ रेकॉर्ड में दर्ज है। लेकिन यह घाटी रंग-बिरंगी चट्टानों से भरी है। इसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। दूसरी हैरान करने वाली बात है कि समुद्र तल से 282 फीट नीचे होने के बाद भी यह घाटी एकदम सूखी है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस जगह पर कभी समुद्र रहा होगा क्योंकि यह समुद्र तल के नीचे है और घाटियों में नमक के टीले भी मिले हैं। इस क्षेत्र के रेगिस्तान बनने के साथ ही पानी सूख गया होगा और ढेर सारा नमक बचकर टीला बन गया होगा। यहां की पहाड़ों और मिट्टी में अलग-अलग तत्व जैसे बोरेक्स, नमक, सोना और चांदी पाए जाते हैं।
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