MAXIMUM WALKING KEEPS YOU HEALTHY AND LONG LIFE.
Health benefits of walking
You carry your own body weight when you walk. This is known as weight-bearing exercise. Some of the benefits include:- increased cardiovascular and pulmonary (heart and lung) fitness
- reduced risk of heart disease and stroke
- improved management of conditions such as hypertension (high blood pressure), high cholesterol, joint and muscular pain or stiffness, and diabetes
- stronger bones and improved balance
- increased muscle strength and endurance
- reduced body fat.
आज बहुत से लोग अपनी स्मार्ट वॉच, पीडोमीटर और फ़ोन पर मौजूद ऐप के ज़रिए अपने हर क़दम को गिनते चलते हैं. हम सब, उस दिन बहुत ख़ुश हो जाते हैं, जिस दिन हमारे 10 हज़ार क़दम पूरे हो जाते हैं.
कुछ लोगों को ये क़दम-ताल गिनने वाले उपकरण एक धोखा लगते हैं. उन्हें यक़ीन नहीं होता कि ये मशीनें हर क़दम का सही-सही हिसाब रखती हैं. आप चाहे दौड़ें या अलसाए हुए धीरे-धीरे चहलक़दमी करें, ये ऐप या स्मार्ट वॉच दोनों में फ़र्क़ नहीं करते. फिर भी, इनके ज़रिए हमें ये पता चल जाता है कि हम कितने एक्टिव हैं.
तो, अगर आप अपने उठाए हुए हर क़दम का हिसाब रखते हैं, तो ये भी दिमाग़ में होगा कि कितने क़दम चलने का लक्ष्य हासिल करना है. ज़्यादातर ऐप या उपकरण दस हज़ार क़दमों के हिसाब से सेट होती हैं. ये वही आंकड़ा है, जो दुनिया भर में मशहूर है कि हमें रोज़ाना दस हज़ार क़दम पैदल चलना चाहिए. आप ने भी दस हज़ार क़दम वाला हिसाब सुना ही होगा. शायद आप को ये लगता हो कि दस हज़ार क़दम चलने का लक्ष्य बहुत हिसाब-किताब लगाकर या बरसों की रिसर्च के बाद तय किया गया होगा. मज़े की बात ये है कि ऐसा कोई रिसर्च नहीं मौजूद है, जो ये कहे कि 8 या बारह नहीं बल्कि दस हज़ार क़दम चलना ही सेहत के लिए मुफ़ीद है.
अगर आप नहीं जानते, तो ये जान लीजिए कि रोज़ दस हज़ार क़दम चलने का ये नुस्खा एक मार्केटिंग अभियान का हिस्सा था. 1964 में जापान की राजधानी टोक्यो में हुए ओलंपिक खेलों के दौरान पीडोमीटर बनाने वाली एक कंपनी ने अपना प्रचार मैनपो-केई (Manpo-Kei) नाम के जुमले के साथ किया था. जापानी भाषा में मैन (man) का मतलब होता है 10, 000, पो (po) का मतलब होता है क़दम और केई (kei) का अर्थ होता है मीटर. पीडोमीटर बनाने वाली कंपनी का ये प्रचार अभियान बहुत क़ामयाब रहा था. तभी से लोगों के ज़हन में बस गया कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए रोज़ाना दस हज़ार क़दम पैदल चलना चाहिए.
उस के बाद से कई ऐसे रिसर्च किए गए हैं, जो पांच हज़ार बनाम दस हज़ार क़दमों के फ़ायदे और नुक़सान का हिसाब लगाएं. लेकिन, ज़्यादातर तजुर्बे इसी नतीजे पर पहुंचे कि रोज़ाना दस हज़ार क़दम चलना ही बेहतर होता है. क्योंकि ये ज़्यादा क़दम का आंकड़ा है. लेकिन, हाल के दिनों तक पांच हज़ार से 10 हज़ार से बीच चले गए क़़दमों के फ़ायदे-नुक़सान के बारे में कोई रिसर्च नहीं हुई
रिसर्च में क्या निकला?
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के प्रोफ़ेसर आई-मिन ली ने अपनी टीम के साथ 16 हज़ार से ज़्यादा महिलाओं के एक समूह पर रिसर्च किया है. ये महिलाएं अपनी उम्र के सातवें दशक में थीं. इनके रोज़ाना की चहलक़दमी का हिसाब लगाया गया. उनकी तुलना की गई. हर महिला को एक उपकरण पहनाया गया था, जो उसने हफ़्ते भर तक पहना था, ताकि रोज़ चले गए फ़ासले का हिसाब रखा जा सके.
चार साल और तीन महीने बाद जब रिसर्चर ने इन महिलाओं से दोबारा संपर्क किया, तो इन में से 504 की मौत हो गई थी. आप को क्या लगता है कि जो महिलाएं जीवित बची थीं, वो रोज़ाना कितना चलती थीं? दस हज़ार क़दम या इससे भी ज़्यादा?
सच तो ये है कि जीवित बची महिलाओं ने रोज़ औसतन 5500 क़दम ही चहलक़दमी की थी. जिन महिलाओं ने रोज़ चार हज़ार से ज़्यादा क़दम चले, उनके 2700 क़दम रोज़ चलने वाली महिलाओं से ज़्यादा जीने की संभावना थी. आप को लग सकता है कि रोज़ जितना ज़्यादा पैदल चला जाए, उतना ही बेहतर होगा. पर, ये सच नहीं है. 7500 क़दम तक तो आप को फ़ायदा नज़र आ सकता है. लेकिन, इससे ज़्यादा और इससे थोड़ा-बहुत कम चलने वालों के बीच ज़्यादा फ़ायदा-नुक़सान नहीं देखा गया. इसका औसत आयु बढ़ने से कोई ताल्लुक़ नहीं था.
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इस रिसर्च की कमी ये है कि हमें ये नहीं पता कि जिन बीमारियों से रिसर्च में शामिल 504 महिलाओं की मौत हुई, वो रिसर्च से पहले से थीं या बाद में उन्हें हुईं. रिसर्च में वही महिलाएं शामिल थीं, जो अपने घर से बाहर निकलकर चल सकती थीं. लोगों को अपनी सेहत की रेटिंग का अधिकार भी दे दिया गया था. पर शायद कुछ ऐसे लोग भी इस रिसर्च में शामिल थे, जो थोड़ा-बहुत तो पैदल चल सकते थे. लेकिन, ज़्यादा दूरी तय करने में सक्षम नहीं थे. ऐसे में उनकी चहलक़दमी से सेहत पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला था.
लेकिन, 70 साल से ज़्यादा उम्र की महिलाओं के लिए शायद रोज़ 7500 क़दम पैदल चलना पर्याप्त है. कुछ विशेष हालात में इससे ज़्यादा चलने से भी कुछ फ़ायदे संभव हैं. जो लोग इससे ज़्यादा चल सकते हैं, उनके बारे में ये कहा जा सकता है कि वो उम्र के इस पड़ाव पर आने से पहले से ही काफ़ी सक्रिय रही थीं.
वैसे, रोज़ दस हज़ार क़दम चलने का हिसाब लगाना भी बहुत थकाऊ हो सकता है. रोज़ ये लक्ष्य हासिल करने के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ेगी, उससे भी लोग थक सकते हैं. ब्रिटेन में 13-14 बरस के कुछ किशोरों को रोज़ दस हज़ार क़दम चलने का लक्ष्य दिया गया था. लेकिन, कुछ ही दिन बाद वो शिकायत करने लगे कि ये उनके साथ नाइंसाफ़ी है.
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जो लोग दिन का ज़्यादातर हिस्सा बैठ कर गुज़ारते हैं, उनके लिए दस हज़ार से कम क़दम चलना भी मनोवैज्ञानिक रूप से फ़ायदेमंद हो सकता है. फिर भी, पैदल चलते हुए हर क़दम का हिसाब रखना, पैदल चलने का लुत्फ़ ख़त्म कर देता है. अमरीका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक जॉर्डन एटकिन ने अपने तजुर्बे में पाया है कि बहुत से लोग दस हज़ार क़दम से भी ज़्यादा चलते थे. लेकिन, वो पैदल चलने का आनंद नहीं उठा पाते थे. उन्हें पैदल चलना भी काम के बोझ जैसा लगता है.
फिट से फिट इंसान के लिए भी रोज़ हर क़दम का हिसाब लगाना थका सकता है. फिर, दस हज़ार क़दम पूरे करने के बाद अगर वो और भी चल सकते हैं, तो भी लक्ष्य पूरा होने पर रुकने के लिए प्रेरित हो जाते हैं.
कुल मिलाकर, अगर आप को लगता है कि हर क़दम गिनने से आप को और पैदल चलने की प्रेरणा मिलेगी, तो आप हिसाब लगाते रहें. लेकिन, याद रखिए कि दस हज़ार क़दम गिनने ही नहीं, चलने का भी कोई ख़ास फ़ायदा नहीं है. आप वही लक्ष्य रखिए, जो हासिल कर सकें. वो दस हज़ार क़दम से कम या ज़्यादा भी हो सकता है.
बेहतर होगा कि हर क़दम का हिसाब लगाने वाले ऐप को फेंक ही दीजिए
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