भारत में पादुका या खड़ाऊ का चलन बहुत पहले से है। पुरातन समय में साधु-संत खड़ाऊ (लकड़ी की चप्पल) पहनते थे। पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहनने के पीछे भी हमारे साधु-संतों की सोच पूर्णत: वैज्ञानिक थी। गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि -मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था। यजुर्वेद में कई जगह लकड़ी की पादुकाओं का भी उल्लेख मिलता है।
- कई बीमारियों से बचाती हैं लकड़ी की चप्पल
1. शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए साधु-संतों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा प्रारंभ की।
2. शरीर की विद्युत तंरगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क न हो सके इसलिए लकड़ी की चप्पल पहनी जाती थी।
3. खडाऊ यानी लकड़ी की चप्पल पहनने से सबसे बड़ा लाभ है कि यह शरीर में रक्त संचार को सुचारू रूप से चलाता है|
4. खड़ऊ पहनने से मानसिक और शारीरिक थकान दूर होती है| यह पैरों की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और रीढ़ की हड्डी सीधी रखने में मदद मिलती है।
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