Bells In Hindu Temple For Animals Alerts, Peace Of Mind and Scientific Reasons
मंदिर में घंटिया जरूर लगी होती हैं। आप मंदिर जाते होंगे तो वहां घंटियों को बजाकर ही आगे बढ़ते होंगे। पर क्या आपने कभी सोचा है कि मंदिर में घंटिया क्यों लगी होती हैं। खैर, हम सब अपनी-अपनी आस्था के अनुसार मंदिर जाते हैं। पर कभी गौर नहीं कि वो कि मंदिर में लटकी घंटी या घंटा हम क्यों बजाते हैं? या हर मंदिर में घंटियां क्यों लगायी जाती हैं ?
हिन्दू धर्म की परम्पराएं के पीछे कोई न कोई कारण ज़रूर हैं। कभी वह कारण वैज्ञानिक होते हैं तो कभी वह कारण आध्यात्मिक। ऐसा ही कारण मंदिर में घंटियों के साथ भी हैं। आज हम आपको मंदिर में घंटियाँ बजाने के पीछे की कहानी बता रहे हैं...
1. मंदिर का केंद्र शांत और शुद्ध वातावरण का होता है। मंदिरों में आने वाला हर व्यक्ति संसार की भौतिक समस्यों से दूर होकर होता है। यहां हर किसी को एक अलग ही शांति मिलती है। इस शांति को बनाए रखने में मंदिर में लटके घंटे का भी बहुत योगदान होता हैं। मन को शांत करने और मंदिर के वातावरण को शुद्ध बनाये रखने में ये घंटे ही उपयोगी हैं।
2. हर मंदिर में घंटियां लगी होती हैं। जो भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है सबसे पहले घंटी बजाता है और उसके बाद ही पूजा-अर्चना शुरू करता है। आज के समय में मंदिरों के चारों ओर बाड़ या दीवारें बनने लगी हैं लेकिन पुराने समय में ऐसा नहीं होता था। तब मंदिर खुले होते थे। जिसकी वजह से जानवर अक्सर मंदिरों में घुस जाया करते थे। इसलिए भी मंदिरों में घंटो का इस्तेमाल किया जाने लगा क्योकि जानवर अक्सर घंटे की तेज़ आवाज़ से डरते हैं और मंदिर के में प्रवेश नहीं करते।
3.कहा जाता हैं कि घंटे से निकलने वाली तरंगें मानव मस्तिष्क के लिए अच्छी होती हैं। इसके पीछे एक खास वजह यह हैं कि मंदिर में लगने वाले घंटे लोहे और तांबे जैसी कई धातुओं से मिल कर बने होते हैं। धातुओं से मिलकर बनी इन घंटियों को जब भी कोई बजाता हैं तो इससे जो तंरगे निकलती हैं। वह व्यक्ति के अंदर से नकारात्मक उर्जा ख़त्म करती हैं और सकारात्मक उर्जा का संचार करती हैं।
4.मंदिर की घंटियों की आवाज से मन शांत हो जाता है। इतना ही नहीं मंदिर में घंटा बजाकर जाने से हम भगवान को अपनी आस्था उन तक पहुंचाते हैं। यह एक प्रकार से भगवान से गुहार लगाने जैसा भी है। इसलिए भी मंदिरों में घंटियां लगाई जाती हैं।
मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। लेकिन इस घंटे या घंटी लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है? कभी आपने सोचा कि यह किस कारण से लगाई जाती है?
घंटियां चार प्रकार की होती हैं :
1. गरूड़ घंटी : गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।
2. द्वार घंटी : यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है।
3. हाथ घंटी : पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
4. घंटा : यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है।
1. गरूड़ घंटी : गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।
2. द्वार घंटी : यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है।
3. हाथ घंटी : पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
4. घंटा : यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है।
मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
पहला कारण घंटी बजाने से देवताओं के समक्ष आपकी हाजिरी लग जाती है। मान्यता अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है।
दूसरा कारण यह कि घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। मन घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है। मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं। सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है।
तीसरा कारण यह कि जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ, तब जो नाद (आवाज) गूंजी थी वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है। घंटी उसी नाद का प्रतीक है। उल्लेखनीय है कि यही नाद 'ओंकार' के उच्चारण से भी जागृत होता है। कहीं-कहीं यह भी लिखित है कि जब प्रलय आएगा उस समय भी ऐसा ही नाद गूंजेगा। मंदिर के बाहर लगी घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है।