साल 1986 में बांध सुरक्षा प्रणालियों पर केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि 20वीं सदी में पूरी दुनिया में 200 से ज्यादा अहम जलाशयों की विफलता के चलते आठ हजार से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई। 1979 में गुजरात के राजकोट जिले में स्थित मच्छू-2 बांध की विफलता के चलते दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
वहीं 2012 में आई गाडगिल रिपोर्ट में पूरी पश्चिम घाट को इकोलॉजिकल सेंसिटिव जोन घोषित करने की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट में पश्चिमी घाट को तीन इकोलॉजिकल सेंसिटिव जोन में बांटने की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि इकोलॉजिकल सेंसिटिव जोन में बड़ी स्टोरेज वाला कोई भी नया बांध नहीं बनाया जाना चाहिए। वहीं थ्रिसूर में अथिराप्पिल्ली और गुंडिया हाइडल प्रोजेक्ट्स को पर्यावरण मंजूरी नहीं देने की सिफारिश की गई थी।
देश में बांधों के ऑपरेशन पर नहीं है कोई नीति
प्रसिद्ध पर्यावरणविद और दक्षिण भारत की नदियों पर बांध के नेटवर्क के विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि बांध की स्टोरेज क्षमता मुख्य समस्या है, जिसका प्रबंधन किया जाना जरूरी है। अगर उसे ठीक से ऑपरेट किया जाता तो यह समस्या नहीं होती। वह कहते हैं कि हमारे देश में बांधों के ऑपरेशन पर कोई नीति नहीं हैं। प्रबंधन की कोई जिम्मेदारी न होने के चलते पानी छोड़ दिया जाता है, जिससे अक्सर बाढ़ की समस्या पैदा होती है। वह बताते हैं कि 31 जुलाई से 8 अगस्त के बीच बारिश कम थी, बावजूद इसके केरल के बांधों में स्टोरेज भरपूर था, लेकिन जैसे ही ज्यादा बारिश शुरू हुई तो अचानक ही पानी छोड़ने का फैसला कर दिया गया, जिससे कई जानें गई और वहां जनजीवन तबाह हो गया।
‘भगवान के घर’ केरल में बाढ़ से मची विभिषिका के लिए बांधों को जिम्मेदार माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि केरल के 80 बांधों में से 36 बाधों के दरवाजे बिना किसी पूर्व चेतावनी के अचानक ही खोल दिए गए, जिससे राज्य में तबाही मची। इनमें से 13 बांध अकेले केरल की जीवनदायनी पेरियार नदी पर ही हैं। वहीं उड़ीसा के खातीगुड़ा के बांध के दरवाजे खोलने से छत्तीसगढ़ के बस्तर, बीजापुर और सुकमा जिलों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया। पिछले दिनों हरियाणा में हथिनीकुंड बांध के दरवाजे खोलने से दिल्ली में यमुना का स्तर बढ़ गया था, और बाढ़ के हालात पैदा हो गए थे।