आमतौर पर हम पर्स को पैंट की पिछली जेब में ही रखते हैं। पर्स में इतनी सारी चीजें होती हैं कि यह काफी मोटा हो जाता है। इसको पीछे की जेब में रखकर बैठना मांशपेशियों और रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचा देता है, जिससे न्यूरो की समस्या बढ़ जाती है। इसलिए इससे सजग रहने की आवश्यकता है। यह जानकारी डॉ. राममनोहर लोहिया संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉ. फरहान ने दी। वह शुक्रवार को इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में न्यूरो ट्रॉमा पर आयोजित कार्यशाला में शिरकत कर रहे थे। तीन दिवसीय इस आयोजन में देश-विदेश से लगभग 360 न्यूरो विशेषज्ञों हिस्सा ले रहे हैं।
डॉ. फरहान ने बताया कि पर्स जिस ओर रहता है उस पैर की मांशपेशियों को दबाता है। साथ ही पर्स की वजह से लोग थोड़ा तिरछा होकर बैठते हैं। इससे रीढ़ की हड्डी के टेढ़े होने की संभावना बन जा
डॉ. फरहान ने बताया कि पर्स जिस ओर रहता है उस पैर की मांशपेशियों को दबाता है। साथ ही पर्स की वजह से लोग थोड़ा तिरछा होकर बैठते हैं। इससे रीढ़ की हड्डी के टेढ़े होने की संभावना बन जाती है। ऐसी अवस्था में थोड़ी सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। उन्होंने बताया कि पर्स को पीछे की जेब में रखकर बैठने से बचना चाहिए। इसके अलावा चोट लगने पर सीटी स्कैन जरूर करवाएं। चोट को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है।
रीढ़ और सिर की हड्डी को जोड़ने में कारगर है डी प्लेट
लोहिया संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग के हेड डॉ. दीपक सिंह ने बताया कि चोट की वजह से सिर के पिछले हिस्से और रीढ़ की हड्डी अलग हो जाती है। इसको जोड़ना बेहद कठिन होता है। अब तक जिस पद्धति से इसको जोड़ा जाता रहा है, उसकी सफलता की गारंटी नहीं होती थी। इसको देखते हुए उन्होंने डी प्लेट नाम से एक डिजाइन बनाई है तो सिर और रीढ़ की हड्डी को गारंटी के साथ जोड़ेगी। इससे फिर कभी इन हड्डियों के अलग होने का खतरा नहीं रहेगा। उन्होंने बताया कि पिछले डेढ़ साल में उन्होंने करीब 22 मरीजों की ऐसी सर्जरी की है। अब तक किसी को भी किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हुई है। उन्होंने अपनी इस खोज को उन्होंने पेटेंट करवाने का दावा किया है।
इंडोवैस्कुलर विधि से दिमाग की नसों को बिना सर्जरी जोड़ना आसान
लोहिया संस्थान के डॉ. कुलदीप यादव ने बताया कि ऐक्सिडेंट के दौरान दिमाग की नसें फट जाती हैं। इससे होने वाली ब्लीडिंग को रोकने के लिए ओपेन सर्जरी करनी पड़ती है। कई मामलों में लोग ऐसी सर्जरी नहीं करवाना चाहते हैं। इस स्थिति में इंडोवैस्कुलर विधि से पैर की धमनियों से होते हुए दिमाग की इन नसों को बांधा या जोड़ा जाता है।
न्यूरो ट्रॉमा की गाइड लाइन जारी
कार्यशाला के दौरान न्यूरो ट्रॉमा सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर गाइडलाइन भी जारी कर दी गई। डॉ. दीपक सिंह ने बताया कि अब गाइडलाइन के अनुसार ही मरीजों का इलाज किया जाएगा। दिमाग की हड्डी को अगर हटाने की नौबत आए तो 15 बाई 10 सेंटीमीटर की हड्डी को ही हटाया जा सकेगा। इसको हटाने के दो महीने के अंदर नई हड्डी लगाना अनिवार्य होगा। उन्होंने बताया कि गाइडलाइन में इस प्रकार के कई निर्देश दिए गए हैं।