SARDAR SAROVAR PROJECT IS PROFIT FOR INDUSTRIAL WATER USE. ONLY 30% CANALS BUILT. NARMADA RIVER WILL BE DRY IN FUTURE-MEGHA PATKAR
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध देश को समर्पित कर दिया लेकिन इस बांध का असली फायदा किसे मिल रहा है ये सोचने का विषय है क्योंकि अभी तक यह योजना पूरी ही नहीं हुई है. सिंचित एरिये में नहर का इंफ्रास्ट्रकचर मुश्किल से 30 प्रतिशत ही बना है
सरदार सरोवर की ऊँचाई बढ़ाने पर मेधा पाटकर का कहना था कि कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए नर्मदा नदी का धँधा बना दिया गया है।
*कुछ महीनों पहले भोपाल की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मेधा पाटकर ने कहा था कि नर्मदा नदी से हर रोज 172 करोड़ लीटर पानी कंपनियों द्वारा लिया जा रहा है*। *उन्होंने कहा कि यह गतिविधि जारी रही तो नर्मदा आने वाले दिनों में यमुना नदी की तरह सूख जाएगी*
*आपको यकीन नही होगा पर यह सच है कि कुछ वर्ष पहले गुजरात की भाजपा सरकार ने यह फैसला किया था कि कोकाकोला को रोजाना 30 लाख लीटर पानी सरदार सरोवर बांध से दिया जाएगा जबकि गुजरात के कई जिलों में पीने को पानी की समुचित व्यवस्था तक नही है*
*मोटरकार फैक्ट्रीज को 60 लाख लीटर पानी प्रतिदिन देने का अनुबंध किया गया है और संभवतः यह फैक्ट्री चीन की कम्पनी लगा रही है, यह हकीकत है विकास का नाम लेने वाले फर्जी राष्ट्रवादीयो की*
कल बीबीसी के लिए पर्यावरण विद हिमांशु ठक्कर ने अपने लेख में लिखा है कि कल प्रधानमंत्री मोदी ने जो उत्सव मनाया वह एक तरह से नर्मदा नदी की मृत्यु का उत्सव था.
उनका मानना है कि मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि इस परियोजना से नुकसान ही ज़्यादा हुआ है जबकि नफ़ा बहुत कम है .यह योजना कच्छ, सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात के लिए बनी थी ये गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़े हैं. यहां पानी देने के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में यह योजना बनी थी. लेकिन आज तक इन इलाक़ों में पानी नहीं पहुंचा है.
वो आगे लिखते हैं कि जापान को जब पता चला कि इस योजना के कारण कई हज़ार लोगों का विस्थापन हो रहा है तो वह पीछे हट गए.
साल 1992 में विश्व बैंक ने अपनी स्वतंत्र जांच बैठाई थी और उसमें पाया था कि इस परियोजना से बहुत ज़्यादा नुकसान होगा, इसलिए विश्व बैंक ने भी इस योजना पर पैसे लगाने से इंकार कर दिया था.
साल 1993-94 में जब भारत सरकार ने अपनी एक स्वतंत्र जांच बैठाई थी, उसमें भी इस योजना को असफल बताया गया था.
बीबीसी का यह आलेख बताता है कि असफल योजना है अन्य स्रोतों से भी इसकी पुष्टि होती हैं
सरदार सरोवर बांध पर निर्माण के समय 6,400 करोड़ रुपए लागत का अनुमान लगाया गया था लेकिन जब यह बन कर तैयार हुआ तब इस पर कुल 50,000 करोड़ रुपए का खर्च आया ओर सबसे बड़ी बात जिसे छुपाया जा रहा है इस योजना ने तय किए गए सिंचित क्षेत्र के मात्र पांच फीसदी हिस्से को ही लाभन्वित किया है
ओर इस बांध परियोजना से जैव विविधता का नुकसान, भूकम्प का बढ़ता खतरा, भूमि स्खलन, मृदा लवणता, जल भराव, मच्छरों का पनपना, भयानक बाढ़ और नदी का मुहाना जैसी जगहों के नुकसान को नहीं आंका गया।
दो बड़े बांधों के निर्माण के समय तकरीबन 33,923 करोड़ रुपए कीमत का वन क्षेत्र डूब में आ गया लेकिन लागत-लाभ विश्लेषण में इसको नहीं जोड़ा गया क्योंकि पर्यावरण और वन मंत्रालय का कहना था कि इसके हर्जाने चुकाना असंभव है। बाँध बनने से पहले विस्थापित होने वालों का अनुमान किसी भी तरह से अंत में 4 करोड़ विस्थापन से प्रभावित की संख्या के करीब नहीं था सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास की मांग आज तक पूरी नहीं हुई है.
क्या वास्तव में समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के जीवन को संकट में डालकर किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना की जा सकती है?