Maximum Cases Of IVF Recorded Of Rich Locality Of Mumbai
33000 Cases Of IVF in One Year.
मुंबई में पिछले 5 सालों में 30 हजार से अधिक कृत्रिम गर्भाधान (आईवीएफ) हुए हैं। आंकड़ों पर नजर डाले तो हर साल औसतन 5 हजार से अधिक बच्चे मुंबई में कृत्रिम गर्भाधान तकनीक से पैदा होते हैं। विशेषज्ञों की मानें, तो बदलती जीवन शैली, शादी में देरी और पति-पत्नी द्वारा आपसी रिश्ते को पूरा समय न दिए जाने के कारण कृत्रिम गर्भाधान की जरूरत बढ़ रही है। सूचना के अधिकार के तहत मुंबई मनपा से मिली जानकारी के अनुसार, 2012 से लेकर अब तक लगातार बढ़त के साथ मुंबई में कृत्रिम गर्भाधान के 32,900 मामले हुए हैं। जाहिर तौर पर यह मुंबई में बढ़ रही नपुंसकता की ओर इशारा करता है।
हर साल बढ़ रहे मामले और सेंटर
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक, महानगर में हर साल कृत्रिम गर्भाधान केंद्रों और कृत्रिम गर्भाधान के मामले बढ़ रहे हैं। 2012 में मुंबई में कृत्रिम तकनीक के जरिए गर्भाधान के आंकड़े 3,961 थे, जो 2016 तक बढ़कर 8,313 हो गए। प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. रेखा डॉवर ने कहा कि आजकल के युवाओं की जीवनशैली पूरी तरह बदल गई है। खान-पान ठीक से न होने और धूम्रपान की आदत के चलते शुक्राणुओं पर बुरा असर होता है। इससे प्राकृतिक रूप से गर्भाधान की प्रक्रिया प्रभावित होती है, और कृत्रिम गर्भाधान की जरूरत पड़ती है। आज की दौड़भाग भरी जिंदगी में लोगों के पास समय की भी कमी है, नतीजतन वैवाहिक जीवन भी ठीक से नहीं चलता और गर्भाधान में देरी होती है।
बदल गई परंपरा
विशेषज्ञों के अनुसार, पहले 20-30 साल की उम्र में महिलाओं को पहले बच्चे का सुख मिल जाया करता था। आज 30 साल की उम्र तक लड़के-लड़कियां अपना करियर संवारने में लगे होते हैं। नतीजतन न केवल शादी देरी से हो रही है, बल्कि उसका असर गर्भाधान पर भी पड़ रहा है। प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. निखिल दातर ने कहा कि समय के साथ शारीरिक बनावट बदलती है। देरी से शादी होने के बाद एक ओर बीमारियां बढ़ने की संभावना हो जाती है, वहीं मोटापे के चलते भी प्राकृतिक रूप से गर्भाधान की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
तनाव भी बड़ी वजह
डॉक्टरों, खासकर मनोचिकित्सक के अनुसार तनाव के कारण भी आजकल कृत्रिम गर्भाधान के मामलों में बढ़ रहे हैं। व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में बढ़ते दबाव के कारण लोग नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं, जिससे उनमें शुक्राणुओं की संख्या कम होने की शिकायत सामने आ रही है। साथ ही, शुक्राणुओं की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। मनोचिकित्सक डॉ. सागर मुंदड़ा ने बताया कि महिलाओं में तनाव बढ़ने से शरीर में कॉर्टिसॉयल नामक हॉर्मन बढ़ता है, जिससे महिलाओं का मासिक चक्र धर्म और अंतत: उनका यौन जीवन भी प्रभावित होती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, आईवीएफ के बढ़ते मामलों के पीछे इसकी सफलता भी एक कारण हो सकती है। कृत्रिम गर्भाधान विशेषज्ञ डॉ. नंदिता पालश्तेकर ने कहा कि कृत्रिम गर्भाधान तकनीक को लेकर लोगों में जागरूकता पहले से बढ़ गई है। इसलिए इसके अधिक मामले देखने को मिल रहे हैं।
व्यावसायिक प्रचार बहुत अधिक
कृत्रिम गर्भाधान विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी सफलता की दर काफी बढ़ गई है, वहीं कूपर हॉस्पिटल के डीन, प्रसूति रोग और कृत्रिम गर्भाधान विशेषज्ञ डॉ. गणेश शिंदे का मानना है कि इसका व्यावसायिक प्रचार बहुत अधिक हो रहा है। हालांकि इसकी सफलता की दर करीब 25 प्रतिशत ही है। लेकिन बहुत से निजी संस्थाओं द्वारा बढ़ा चढ़ा कर इसका प्रचार किया जा रहा है। नतीजतन अगर बच्चा होने में देरी होती है तो तुरंत लोग कृत्रिम गर्भाधान की तरफ चले जाते हैं।
अमीर बस्तियों में अधिक मामले
सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के मुताबिक कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के अधिकतर मामले मलबार हिल, ग्रांट रोड वाले डी वॉर्ड में देखने में आए हैं। पिछले 5 सालों में कृत्रिम गर्भाधान के 12,759 मामले सामने आए हैं। इसके बाद जुहू, वर्सोवा, जोगेश्वरी वाले के/पश्चिम वॉर्ड का नंबर हैं। इन इलाकों में ज्यादातर पैसे वाले लोग रहते हैं।
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक, महानगर में हर साल कृत्रिम गर्भाधान केंद्रों और कृत्रिम गर्भाधान के मामले बढ़ रहे हैं। 2012 में मुंबई में कृत्रिम तकनीक के जरिए गर्भाधान के आंकड़े 3,961 थे, जो 2016 तक बढ़कर 8,313 हो गए। प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. रेखा डॉवर ने कहा कि आजकल के युवाओं की जीवनशैली पूरी तरह बदल गई है। खान-पान ठीक से न होने और धूम्रपान की आदत के चलते शुक्राणुओं पर बुरा असर होता है। इससे प्राकृतिक रूप से गर्भाधान की प्रक्रिया प्रभावित होती है, और कृत्रिम गर्भाधान की जरूरत पड़ती है। आज की दौड़भाग भरी जिंदगी में लोगों के पास समय की भी कमी है, नतीजतन वैवाहिक जीवन भी ठीक से नहीं चलता और गर्भाधान में देरी होती है।
बदल गई परंपरा
विशेषज्ञों के अनुसार, पहले 20-30 साल की उम्र में महिलाओं को पहले बच्चे का सुख मिल जाया करता था। आज 30 साल की उम्र तक लड़के-लड़कियां अपना करियर संवारने में लगे होते हैं। नतीजतन न केवल शादी देरी से हो रही है, बल्कि उसका असर गर्भाधान पर भी पड़ रहा है। प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. निखिल दातर ने कहा कि समय के साथ शारीरिक बनावट बदलती है। देरी से शादी होने के बाद एक ओर बीमारियां बढ़ने की संभावना हो जाती है, वहीं मोटापे के चलते भी प्राकृतिक रूप से गर्भाधान की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
तनाव भी बड़ी वजह
विशेषज्ञों के अनुसार, आईवीएफ के बढ़ते मामलों के पीछे इसकी सफलता भी एक कारण हो सकती है। कृत्रिम गर्भाधान विशेषज्ञ डॉ. नंदिता पालश्तेकर ने कहा कि कृत्रिम गर्भाधान तकनीक को लेकर लोगों में जागरूकता पहले से बढ़ गई है। इसलिए इसके अधिक मामले देखने को मिल रहे हैं।
व्यावसायिक प्रचार बहुत अधिक
कृत्रिम गर्भाधान विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी सफलता की दर काफी बढ़ गई है, वहीं कूपर हॉस्पिटल के डीन, प्रसूति रोग और कृत्रिम गर्भाधान विशेषज्ञ डॉ. गणेश शिंदे का मानना है कि इसका व्यावसायिक प्रचार बहुत अधिक हो रहा है। हालांकि इसकी सफलता की दर करीब 25 प्रतिशत ही है। लेकिन बहुत से निजी संस्थाओं द्वारा बढ़ा चढ़ा कर इसका प्रचार किया जा रहा है। नतीजतन अगर बच्चा होने में देरी होती है तो तुरंत लोग कृत्रिम गर्भाधान की तरफ चले जाते हैं।
अमीर बस्तियों में अधिक मामले