Bombay High Court Chief Justice को स्वीकार नहीं Party In Person-पार्टी इन पर्सन ने लगाया आरोप
Not Allowing To Attend Case Without Advocate Against Corporate PIL
Giving Face Value Credit To Corporate Respondents.
Law of Natural Justice Ignored At Bombay High Court.
Poor Public Cannot Afford Costly Advocate So Fighting As In Person.
जनता का टैक्स पर जनता के साथ अन्नाय!
INJUSTICE CAN INCREASE VIOLENCE IN SOCIETY
जनता का टैक्स पर जनता के साथ अन्नाय!
INJUSTICE CAN INCREASE VIOLENCE IN SOCIETY
9Lacs Approx. Cases Heard By All High Courts and SC Without Advocate In 20 Years.
Millions of Party In Person Cases Heard At Lower Court!
वही
मुम्बई:- न्याय की सबसे प्रमुख अवधारणा है कि सभी को सहज और सुलभता से न्याय मिल सके। न्याय को पाने के लिए यदि कानून महंगे-महंगे अधिवक्ताओं को लेना जरूरी हो जायेगा, तो पार्टी इन पर्सन का क्या होगा। गौरतलब है कि इस समय देश के समस्त हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में विगत देा दशक में 8लाख 85 हजार पार्टी इन पर्सन तौर पर अपना न्याय स्वंय ले रहे है और ले चुके हैं। वहीं मुम्बई हाई कोर्ट की प्रमुख न्यायधीश नहीं चाहती कि कोई पार्टी इन पर्सन के रूप में अपना न्याय लेने की कोशिश करे। दर्जनों पीआईएल दायर कर चुके सपन श्रीवास्तव का कहना है कि प्रमुख न्यायधीश का कहना है कि वे किसी भी जनहितयाचिका के लिए अपने अधिवक्ता के साथ ही आये तभी उनसे कोई बात हो सकेगी। शिकायतकर्ता के अनुसार कोई प्रमुख न्यायधीश इस प्रकार से पार्टी इन पर्सन को कैसे नकार सकता है, ऐसे में सभी के लिए न्याय कैसे उपलब्ध हो सकेगा। उनके इस आरोप में दम दिखाई देता है, सभी के लिए अधिवक्ताओं की फीस देना संभव नहीं होता है। इससे से तो पूरे देश में केवल दो दशकों में ही लाखों व्यक्तियों ने पार्टी इन पर्सन के रूप में न्याय ले पाये। यही नहीं हाल में जब पूर्व सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मार्केण्डेय काटजू को न्यायलय की अवमानना का दोषी बताया गया था, तो वे स्वंय भी पार्टी इन पर्सन के रूप में कोर्ट मंे खडे हुए थे। ऐसे में चीफ जस्टिस बाम्बे होईकोर्ट की माननीय मंजूला चैल्लूर के द्वारा पार्टी इन पर्सन के रूप में अपना बचाव स्वंय नहीं करने देना संविधान का उल्लघंन है। शिकायतकर्ता का मानना है कि यदि दो दशकों में पार्टी इन पर्सन केा न्याय के लिए इजाजत नहीं दी गयी होती तो इनमें से कई न्याय पाने के लिए कोई भी रास्ता अपना सकते थे। यदि ऐसे होता तो यह समाज के लिए कितना हितकर हुआ होता, ये आज के दौर को देखकर आसानी से समझा जा सकता है। नक्सलवाद, आतंकवाद के जितने भी पुरोधा वे सभी अपने आप को यही कह कर अपना बचाव करते हैं, कि उन्हें समाज से सही समय पर न्याय नहीं मिला, इसलिए वे छीनकर अपना न्याय हासिल कर रहे हैं।