JAMMU:जम्मू कश्मीर में रहने वाले म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान मोहम्मद युसुफ़ ने मंदिरों के इस शहर में खुद को कभी असुरक्षित महसूस नहीं किया.
मदरसा में पढ़ाने वाले 36 साल के मोहम्मद पिछले 11 साल से जम्मू के सीमाई इलाके में रह रहे हैं.
उन्होंने हमेशा जम्मू को अपना दूसरा घर माना. लेकिन आज हालात बदल गए हैं.
जम्मू के अलग-अलग इलाकों में रोहिंग्या को निशाना बनाते हुए 'जम्मू छोड़ो' के पोस्टर लगाए जाने के बाद युसुफ की रातों की नींद हराम हो गई है. अपना भविष्य 'अनिश्चित' नजर आने लगा है.
ये कहा जाता है कि दुनिया में रोहिंग्या मुसलमान ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय है जिस पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म हो रहा है.
आख़िर रोहिंग्या कौन हैं? इनसे म्यांमार को क्या दिक्क़त है? ये भागकर बांग्लादेश क्यों जा रहे हैं? इन्हें अब तक नागरिकता क्यों नहीं मिली? आंग सान सू ची दुनिया भर में मानवाधिकारों की चैंपियन के रूप में जानी जाती हैं और उनके रहते यह ज़ुल्म क्यों हो रहा है? जानें सबकुछ-
रोहिंग्या कौन हैं?
म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है. म्यांमार में एक अनुमान के मुताबिक़ 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं. इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं. सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है. हालांकि ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं. रखाइन स्टेट में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है. इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.
बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं. रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं. इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था.
आख़िर रखाइन राज्य में हो क्या रहा है?
म्यांमार में मौंगडोव सीमा पर 9 पुलिस अधिकारियों के मारे जाने के बाद पिछले महीने रखाइन स्टेट में सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया था. सरकार के कुछ अधिकारियों का दावा है कि ये हमला रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने किया था. इसके बाद सुरक्षाबलों ने मौंगडोव ज़िला की सीमा को पूरी तरह से बंद कर दिया और एक व्यापक ऑपरेशन शुरू किया.
रोहिंग्या कार्यकर्ताओं का कहना है कि 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. म्यामांर के सैनिकों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के संगीन आरोप लग रहे हैं. सैनिकों पर प्रताड़ना, बलात्कार और हत्या के आरोप लग रहे हैं. हालांकि सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है. कहा जा रहा है कि सैनिक रोहिंग्या मुसलमानों पर हमले में हेलिकॉप्टर का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.
क्या म्यांमार सरकार इसके लिए दोषी है?
म्यांमार में 25 वर्ष बाद पिछले साल चुनाव हुआ था. इस चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी. हालांकि संवैधानिक नियमों के कारण वह चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रपति नहीं बन पाई थीं. सू ची स्टेट काउंसलर की भूमिका में हैं. हालांकि कहा जाता है कि वास्तविक कमान सू ची के हाथों में ही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सू ची निशाने पर हैं. आरोप है कि मानवाधिकारों की चैंपियन होने के बावजूद वे खामोश हैं. सरकार से सवाल पूछा जा रहा है कि आख़िर रखाइन में पत्रकारों को क्यों नहीं जाने दिया जा रहा है. राष्ट्रपति के प्रवक्ता ज़ाव हती ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी ग़लत रिपोर्टिंग हो रही है.

क्या कर रही हैं आंग सान सू ची?
आंग सान सू ची अभी अपने मुल्क की वास्तविक नेता हैं. हालांकि देश की सुरक्षा आर्म्ड फोर्सेज के हाथों में है. यदि सू ची अंतराष्ट्रीय दवाब में झुकती हैं और रखाइन स्टेट को लेकर कोई विश्वसनीय जांच कराती हैं तो उन्हें आर्मी से टकराव का जोखिम उठाना पड़ सकता है. उनकी सरकार ख़तरे में आ सकती है.
पिछले 6 हफ्तों से आंग सान सू ची पूरी तरह से चुप हैं. वह इस मामले में पत्रकारों से बात भी नहीं कर रही हैं. जब इस मामले में उन पर दबाव पड़ा तो उन्होंने कहा था कि रखाइन स्टेट में जो भी हो रहा है वह 'रूल ऑफ लॉ' के तहत है. इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आवाज़ उठ रही है. म्यांमार में रोहिंग्या के प्रति सहानुभूति न के बराबर है. रोहिंग्या के ख़िलाफ़ आर्मी के इस क़दम का म्यांमार में लोग जमकर समर्थन कर रहे हैं.

बांग्लादेश की आपत्ति
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को म्यांमार के राजदूत से इस मामले पर गहरी चिंता जताई है. बांग्लादेश ने कहा कि परेशान लोग सीमा पार कर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में यहां आ रहे हैं.
बांग्लादेश ने कहा कि सीमा पर अनुशासन का पालन होना चाहिए. बांग्लादेश अथॉरिटी की तरफ से सीमा पार करने वालों को फिर से म्यांमार वापस भेजा जा रहा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसकी कड़ी निंदा की है और कहा है कि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है.
बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार नहीं कर रहा है. रोहिंग्या और शरण चाहने वाले लोग 1970 के दशक से ही म्यांमार से बांग्लादेश आ रहे हैं. इस हफ्ते की शुरुआत में ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक सैटलाइट तस्वीर जारी की थी. इसमें बताया गया था कि पिछले 6 हफ्तों में रोहिंग्या मुसलमानों के 1,200 घरों को तोड़ दिया गया.