HISTORIC RAILWAY BRIDGE BROKEN FOR ROAD WIDENING AT UMARIA CITY
Umaria: रेलवे स्टेशन और पुराने बस स्टैण्ड के बीच 1884 में बना रेलवे की छोटी लाइन का पुल 132 साल बाद 2016 में ध्वस्त कर दिया गया। इस पुल के साथ शहर के पुराने लोगों की बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं और उमरिया के निर्माण की कथा भी यही पुल कहता है। इस पुल के टूटने से विकास के चौड़े रास्ते गढ़े जाएंगे लेकिन इस पुल के टूटने से कुछ दिलों में दर्द भी हो रहे हैं। हालांकि उस दर्द को महसूस करने की भावनाएं विकास गढ़ने का दावा करने वाले नहीं रखते। लेकिन फिर भी इस पुल की कहानी आज हर पुराना आदमी नई पीढ़ी को सुना रहा है।
शॉ वालेस के जमाने की बात
उमरिया के पुराने लोग बताते हैं ये शॉ वालेस SHAW WALICE company के जमाने की बाते हैं। उमरिया में नौ नंबर खदान और पीली कोठी की दूसरी खदानें शॉ वालेस कंपनी और रींवा कोल फील्ड्स Rewa coal field के पार्टनरशिप में चला करती थीं। पहले यहां से कोयला बैलगाड़ियों से भेजा जाता था लेकिन जब कटनी से उमरिया तक रेलवे लाइन का विस्तार हो गया तो आज जहां रेलवे स्टेशन है वहां कोल साइडिंग बनायी गई और वहां से माइन्स तक छोटी रेल गाड़ी के लिए पटरी बिछायी गई। छोटी रेलवे लाइन की ये पटरी इसी 132 साल पुराने रेलवे पुल से होकर गुजरती थी। छोटी लाइन से होकर मालगाड़ियां गुजरती थीं और उनसे कोयला साइडिंग तक गुजरता था और फिर यहां से कटनी चला जाता था।
दो इंजन थे राजा-रानी
उस जमाने में दो छोटे इंजन होते थे जिनका नाम था राजा और रानी। ये इंजन न सिर्फ छोटी मालगाड़ियों को खींचते थे बल्कि जब कभी शॉ वालेस कंपनी के डायरेक्टर आते थे तो उनका सैलून भी डायरेक्टर बंगले तक ले जाते थे।
डायरेक्टर बंगला यानि आज की वो बिल्डिंग जिसमें कलेक्टर निवास करते हैं। इसी बिल्डिंग के पीछे खदान का मुहाड़ा है और यहीं से कोयला स्टेशन भेजा जाता था। इस पुल का इतिहास इतना ही जरूर है पर ये पुल उमरिया की बहुत बड़ी पहचान भी था।
ब्रिटिशकालीन पुल तोड़ने में आया पसीना
इस पुल का निर्माण 1884 मे पूरा हुआ और 132 साल बाद जब 2016 में इसे तोड़ा गया तो तोड़ने वाली मशीन को पसीना आ गया। इस पुल में कहीं कोई दरार नहीं पड़ी थी। सड़क चौड़ीकरण के लिए पुल तोड़ने से पहले न तो डायवर्सन दिया गया और न ही किसी मोड़ पर बैरीकेट्स लगाए गए।