रेलवे : मप्र के तीन डिवीजन में 7000 से ज्यादा पद खाली
टिकट लेकर जब आप ट्रेन में चढ़ते हैं तो उसमें मंगलमय सफर की कामना की जाती है। मगर सब कुछ उतना मंगलमय भी नहीं है। दरअसल, रोज सफर करने वाले लाखों यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी रेलवे सेफ्टी से जुड़े जिन विभागों के पास है उनमें देशभर में लगभग 1.30 लाख पद खाली हैं।
मप्र में तीन रेल मंडलों रतलाम, जबलपुर और भोपाल में यह संख्या 7 हजार से ज्यादा है। यही नहीं, शनिवार रात जिस रेल सेक्शन में इंदौर-पटना ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई, वहां 14 हजार पद खाली हैं। चीफ कमिश्नर (रेल सेफ्टी) भी मानते हैं कि 60-65 फीसदी दुर्घटनाएं मानवीय भूल से होती हैं।
...तो क्या यह मौत का सफर है? यह सवाल उठाने पर रेलवे अफसर यह कहकर इनकार कर देते हैं कि रोज सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचने वालों की तुलना में हादसे बहुत कम हैं। मगर जो हैं, वे भयावह हैं, इससे इनकार नहीं कर पाते हैं।
रेल फ्रैक्चर या कोच में दिक्कत, मामला सेफ्टी का ही
ऑल इंडिया रेलवेमैन फेडरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा के मुताबिक किसी भी स्थिति में मसला रेलवे सेफ्टी (संरक्षा) का है। पद खाली होने से कर्मचारियों को 15-15 घंटे काम करना पड़ता है। कई इलाके ऐसे हैं, जहां तीन पेट्रोलमैन होना चाहिए वहां एक भी नहीं है।
70 फीसदी काम सेफ्टी से जुड़ा
रेलवे के मुख्य रूप से सात विभाग हैं। ऑपरेटिंग, मेकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, सिग्नल एंड टेलीकॉम, इंजीनियरिंग, मेडिकल, पर्सनल। इसमें से पांच विभाग रेलवे की सेफ्टी से जुड़े हैं। इनमें रेलवे के 70 फीसदी कर्मचारी काम करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक रेलवे में लगभग ढाई लाख पद खाली हैं, जिनमें से 1.30 लाख सेफ्टी से ही जुड़े हुए हैं।
सेफ्टी में ही सबसे कमी
मध्यप्रदेश में आने वाले तीन डिजीवन में सेफ्टी से जुड़े खाली पद
डिवीजन कुल पद खाली पद
रतलाम 7000 1000
भोपाल 12000 2000 (1600)
जबलपुर 19000 3500
(ऑल इंडिया रेलवेमैन एम्प्लाइज फेडरेशन द्वारा डिवीजन वार उठाई मांगों के आधार पर।)
मानवीय भूल ही बड़ा कारण
60-65 फीसदी दुर्घटनाएं मानवीय भूल से होती हैं। जांच में कारण के साथ-साथ काम के अनुपात में कर्मचारियों की संख्या और उन पर दबाव का आकलन भी करते हैं। मैन पावर की कमी का मुद्दा आता है तो रेलवे बोर्ड को सुझाव देते हैं।
एस. नायक, चीफ कमिश्नर (रेल सेफ्टी)
4 डिब्बों के लिए एक टेक्निशियन
इंदौर में कोचिंग डिपो से लेकर पिट लाइन तक काम में जुटे अफसर से कर्मचारी तक हादसे से डरे हुए हैं। कोई भी कुछ कहने को तैयार नहीं है। बहुत पूछने पर एक या दो कर्मचारी इतना बोलने की हिम्मत ही जुटा पाते हैं कि मेंटेनेंस में कमी होती तो ट्रेन 700 किमी तक कैसे जाती? जितना स्टाफ है, सब सुबह 6 बजे से भिड़ जाता है।
एक ट्रेन के मेंटेनेंस के लिए चाहिए कम से कम छह घंटे
एक ट्रेन के मेंटेनेंस के लिए कम से कम 6 घंटे का समय जरूरी है। इसमें दो गैंग और 12 कर्मचारी होते हैं। एक गैंग मेकेनिकल यानी पहिया का तापमान, इंजन, ब्रेक, कोच, कपलिंग, स्प्रिंग, हॉर्न प्रेशर, ब्रेक प्रेशर आदि सभी चेक करती है। दूसरी गैंग इलेक्ट्रिकल यानी कोच की लाइट, इलेक्ट्रिक सप्लाई आदि देखती है।
सेफ्टी (संरक्षा) से जुड़े 4-5 फीसदी पद खाली
(पश्चिम रेलवे रतलाम मंडल डीआरएम मनोज शर्मा से बातचीत)
- सेफ्टी से जुड़े पद खाली होने का असर ट्रेनों के मेंटेनेंस पर पड़ता है?
4-5 फीसदी पद खाली हैं। हर साल रिटायरमेंट ही 3 फीसदी तक है। भर्ती भी होती है पर इसका असर मेंटेनेंस पर नहीं पड़ने दिया जाता है।
- इंदौर में ट्रेनों के हिसाब से पर्याप्त पिट लाइन है?
इंदौर में तीन पिट लाइन है। हर पिट लाइन पर 3-4 गाड़ियों का मेंटेनेंस हो जाता है पर यह अधिकतम क्षमता है।
रतलाम : वेस्टर्न रेलवे मैन फेडरेशन एम्प्लाइज यूनियन रतलाम के संभागीय सचिव श्याम बाबू श्रीवास्तव कहते हैं मेंटेनेंस से जुड़े महकमे से 15-20 फीसदी पद खाली हैं।
- रतलाम डिवीजन : 30-35 गाड़ियां चलती हैं।
जबलपुर : मध्यप्रदेश में सबसे बड़ा जबलपुर रेल मंडल है। वेस्टर्न सेंट्रल रेलवे मैन एम्प्लाइज यूनियन जबलपुर के संभागीय सचिव नवीन लुटारिया बताते हैं जबलपुर में ट्रेन संचालन से जुड़े 2200 पद हैं, जिसमें से लगभग 400 पद खाली हैं।
- 70 जोड़ी गाड़ियां चलती हैं।
भोपाल : वेस्टर्न सेंट्रल रेलवे मैन एम्प्लाइज यूनियन के भोपाल डिवीजन सेक्रेटरी फिलिप ओमान बताते हैं भोपाल डिवीजन में तो 1000 से ज्यादा गैंगमैन के पद ही खाली हैं।
भोपाल डिवीजन : 50 जोड़ी गाड़ियां चलती हैं।