लाखो हिंसा में मारे गये, शिया जायदा शन्तिप्रिया...
खमेनी ने सऊदी अरब के शासकों पर आरोप लगाते हुए कहा था, 'मुस्लिम तीर्थयात्रियों और हाजियों के लिए पवित्र स्थल मक्का, मदीना पर सऊदी अरब राजनीति कर रहा है। सऊदी शासकों का अल्ला के बंदों प्रति अत्याचारपूर्ण रवैया है। दुनिया भर के इस्लाम को हाजियों के सबसे पवित्र स्थल के मैनेजमेंट के बारे में फिर से सोचना चाहिए।'
मुस्लिम वर्ल्ड शिया और सुन्नियों के बीच बंटा
ईरान और सऊदी में भारी तनाव के पीछे शिया और सुन्नी प्रभुत्व है। सऊदी अरब की 90 फीसदी आबादी सुन्नी है जबकि ईरान की 95 पर्सेंट आबादी शिया है। शिया और सुन्नियों के बीच मतभेद का पुराना इतिहास है। दोनों के बीच सातवीं सदी से ही टकराव की स्थिति रही है। हाजियों को लेकर उठे विवाद पर शेख अब्दुल-अजीज ने कहा, 'हमें समझना होगा कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं। ये मूलतः पारसी थे जिनकी मुसलमानों से शत्रुता रही है। खासकर इनकी सुन्नियों से दुश्मनी रही है।' अयातुल्ला ने यह भी आरोप लगाया था कि पिछले साल हज यात्रा में भगदड़ के दौरान जो लोग मारे गए थे उनकी हत्या की गई थी।
हाल ही में सऊदी अरब ने शिया गुरु निम्र बक्र अल-निम्र को फांसी पर लटका दिया था। ईरान में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी। ईरान स्थित सऊदी अरब के दूतावास को आग के हवाले कर दिया गया था। दुनिया भर के इस्लामिक देशों में शियाओं और सुन्नियों के बीच नफरत खत्म नहीं हो रही है। हाल के वर्षों में शिया और सुन्नियों के बीच खूनी संघर्ष बढ़े हैं। इसे सीरिया, इराक और यमन में साफ तौर पर देखा जा सकता है। इस मामले में सांप्रदायिक टकराव को लेकर करीब 14 देश आपस में जूझ रहे हैं।
शियाओं और सुन्नियों को बीच नफरत क्यों?
शियाओं और सुन्नियों के बीच टकराव और नफरत का इतिहास सातवीं सदी से ही है। इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद शिया और सुन्नियों में फूट 632 ईस्वी में पड़ी। इन्हें इस्लाम धर्म का संस्थापक माना जाता है। पैगंबर मोहम्मद की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर मतभेद शुरू हुआ कि अब इस्लाम का कैलिफ (खलीफा) कौन होगा। सुन्नियों का मानना था कि मोहम्मद साहब का उत्तराधिकार उनकी पत्नी के पिता और उनके पर्सनल फ्रेंड अबु बक्र को मिलना चाहिए। ये मानते थे कि इस्लाम को अबु ही लीड करें क्योंकि मुस्लिम कम्युनिटी में उन्हें लेकर सहमति थी। शियाओं का मानना था कि मोहम्मद साहब ने अपने कजन और दामाद अली इब्न अबी तालिब को उत्तराधिकार बनाया था।
यह विवाद लंबे संघर्ष के रूप में तब्दील होता गया कि इस्लाम का उत्तराधिकारी कौन होगा। सुन्नियों का मानना था कि मुस्लिम नेताओं को उत्तराधिकारी उन्हें बनाना चाहिए जो योग्य है जबकि शियाओं का मानना था कि मोहम्मद साहब के खून से संबंध रखने वाले को यह जिम्मेदारी मिलनी चाहिए। हालांकि अली अंततः चौथे कैलिफ बन गए। अली की हत्या कर दी गई और इनके बेटे को भी मार दिया गया। शिया मुस्लिम अली को एकमात्र प्रासंगिक कैलिफ मानते हैं। दूसरी तरफ सुन्नियों ने उमायाद, अब्बासिड और ऑटमन वंश के लोगों को प्रासंगिक कैलिफ माना।
इन दोनों ने शिया और सुन्नी नाम का चुनाव भी अपने हिसाब से किया। सुन्नी शब्द 'अहल अल-सुन्ना' मतलब 'लोगों की राह' से आया है। इनका कहना है कि मोहम्मद ने जो सबक और आदतें सिखाईं उन्हीं को वे फॉलो करते हैं। शिया शब्द 'शियत अली' मतलब अली का खेमा से आया है। इनका मानना है कि इस मत का सीधा संबंध मोहम्मद के ब्लड से है।
![](http://m.navbharattimes.indiatimes.com/photo/54166287.cms)
आज की तारीख में 10 में से एक मुस्लिम शिया
शिया इस्लाम की शुरुआत एक मूवमेंट के रूप में इस्लामिक कम्युनिटी के बीच खास रूप में शुरू हुआ था। आज की तारीख में ये अल्पसंख्यक हैं। प्यू रिसर्च के मुताबिक दुनिया भर की मुस्लिम आबादी में शियाओं की तादाद 10 से 13 पर्सेंट तक है। 87 से 90 पर्सेंट सुन्नी हैं। प्यू ने पाया कि बहुसंख्यक शिया आबादी महज कुछ देशों में रहती है। ये देश हैं- ईरान, पाकिस्तान, इंडिया और इराक। ईरान की आबादी 77 मिलियन है और शियाओं की आबादी 96 पर्सेंट है। इसका मतलब यह हुआ का दुनिया की एक तिहाई शिया आबादी ईरान में रहती है। दूसरी तरफ मिस्र, सऊदी अरब और जॉर्डन सुन्नी प्रभुत्व वाले देश हैं।
मिडल-ईस्ट के कई ऐसे देश हैं जिनमें शिया और सुन्नी होने के कारण दीवार लगातार चौड़ी हो रही है। यमन में 40 पर्सेंट से ज्यादा आबादी शिया है। लेबनान में भी 45 से 55 पर्सेंट आबादी शियाओं की है। जनसंख्या हमेशा सत्ता कंट्रोल की बुनियाद नहीं बनती है। सीरिया की बहुसंख्यक आबादी सुन्नी है जबकि सीरियन प्रेजिडेंट बशर अल-अशद और उनके दिवंगत पिता शिया इस्लाम से ताल्लुक रखते हैं। बहरीन का नेतृत्व सुन्नी है जबकि बहुसंख्यक आबादी शियाओं की है। इराक में भी शियाओं की आबादी ज्यादा है पर देश का शासक सद्दाम हुसैन सुन्नी था।
सुन्नी और शिया इस्लाम की व्याख्या अलग-अलग तरीके से करते हैं
शियाओं को सुन्नियों के बीच दरार की तुलना क्रिस्चन चर्च के बीच कैथलिक और प्रोटेस्टेंट से की जाती है। हालांकि यह अपूर्ण तुलना है लेकिन इस राह के आधार पर समझा जा सकता है। दोनों में एक ही स्थिति है कि एक ही धर्म में व्याख्या के आधार पर दो पंथों का जन्म हुआ। इसी तरह इन दोनों के तर्कों और सिद्धांतो में मतभेदों के कारण राजनीतिक हिंसा को जमीन मिली। शिया और सुन्नी दोनों कुरान को कबूल करते हैं। इसके साथ ही दोनों मोहम्मद पैगंबर के बारे में बुनियादी बातें सिखाते हैं। दोनों की परंपराएं भी एक हैं। दोनों रमजान में फास्टिंग रखते हैं। मक्का दोनों के लिए पवित्र स्थान है। हालांकि दोनों के बीच इस्लाम को फॉलो करने में में बुनियादी फर्क है। सुन्नी इस्लामिक स्क्रिप्चर की व्याख्या पर फोकस रहते हैं और उसी के आधार पर रुख करते हैं जबकि शिया धार्मिक नेताओं के मार्गदर्शन को फॉलो करते हैं।
ईरान और सऊदी में भारी तनाव के पीछे शिया और सुन्नी प्रभुत्व है। सऊदी अरब की 90 फीसदी आबादी सुन्नी है जबकि ईरान की 95 पर्सेंट आबादी शिया है। शिया और सुन्नियों के बीच मतभेद का पुराना इतिहास है। दोनों के बीच सातवीं सदी से ही टकराव की स्थिति रही है। हाजियों को लेकर उठे विवाद पर शेख अब्दुल-अजीज ने कहा, 'हमें समझना होगा कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं। ये मूलतः पारसी थे जिनकी मुसलमानों से शत्रुता रही है। खासकर इनकी सुन्नियों से दुश्मनी रही है।' अयातुल्ला ने यह भी आरोप लगाया था कि पिछले साल हज यात्रा में भगदड़ के दौरान जो लोग मारे गए थे उनकी हत्या की गई थी।
हाल ही में सऊदी अरब ने शिया गुरु निम्र बक्र अल-निम्र को फांसी पर लटका दिया था। ईरान में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी। ईरान स्थित सऊदी अरब के दूतावास को आग के हवाले कर दिया गया था। दुनिया भर के इस्लामिक देशों में शियाओं और सुन्नियों के बीच नफरत खत्म नहीं हो रही है। हाल के वर्षों में शिया और सुन्नियों के बीच खूनी संघर्ष बढ़े हैं। इसे सीरिया, इराक और यमन में साफ तौर पर देखा जा सकता है। इस मामले में सांप्रदायिक टकराव को लेकर करीब 14 देश आपस में जूझ रहे हैं।
शियाओं और सुन्नियों को बीच नफरत क्यों?
शियाओं और सुन्नियों के बीच टकराव और नफरत का इतिहास सातवीं सदी से ही है। इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद शिया और सुन्नियों में फूट 632 ईस्वी में पड़ी। इन्हें इस्लाम धर्म का संस्थापक माना जाता है। पैगंबर मोहम्मद की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर मतभेद शुरू हुआ कि अब इस्लाम का कैलिफ (खलीफा) कौन होगा। सुन्नियों का मानना था कि मोहम्मद साहब का उत्तराधिकार उनकी पत्नी के पिता और उनके पर्सनल फ्रेंड अबु बक्र को मिलना चाहिए। ये मानते थे कि इस्लाम को अबु ही लीड करें क्योंकि मुस्लिम कम्युनिटी में उन्हें लेकर सहमति थी। शियाओं का मानना था कि मोहम्मद साहब ने अपने कजन और दामाद अली इब्न अबी तालिब को उत्तराधिकार बनाया था।
यह विवाद लंबे संघर्ष के रूप में तब्दील होता गया कि इस्लाम का उत्तराधिकारी कौन होगा। सुन्नियों का मानना था कि मुस्लिम नेताओं को उत्तराधिकारी उन्हें बनाना चाहिए जो योग्य है जबकि शियाओं का मानना था कि मोहम्मद साहब के खून से संबंध रखने वाले को यह जिम्मेदारी मिलनी चाहिए। हालांकि अली अंततः चौथे कैलिफ बन गए। अली की हत्या कर दी गई और इनके बेटे को भी मार दिया गया। शिया मुस्लिम अली को एकमात्र प्रासंगिक कैलिफ मानते हैं। दूसरी तरफ सुन्नियों ने उमायाद, अब्बासिड और ऑटमन वंश के लोगों को प्रासंगिक कैलिफ माना।
इन दोनों ने शिया और सुन्नी नाम का चुनाव भी अपने हिसाब से किया। सुन्नी शब्द 'अहल अल-सुन्ना' मतलब 'लोगों की राह' से आया है। इनका कहना है कि मोहम्मद ने जो सबक और आदतें सिखाईं उन्हीं को वे फॉलो करते हैं। शिया शब्द 'शियत अली' मतलब अली का खेमा से आया है। इनका मानना है कि इस मत का सीधा संबंध मोहम्मद के ब्लड से है।
आज की तारीख में 10 में से एक मुस्लिम शिया
शिया इस्लाम की शुरुआत एक मूवमेंट के रूप में इस्लामिक कम्युनिटी के बीच खास रूप में शुरू हुआ था। आज की तारीख में ये अल्पसंख्यक हैं। प्यू रिसर्च के मुताबिक दुनिया भर की मुस्लिम आबादी में शियाओं की तादाद 10 से 13 पर्सेंट तक है। 87 से 90 पर्सेंट सुन्नी हैं। प्यू ने पाया कि बहुसंख्यक शिया आबादी महज कुछ देशों में रहती है। ये देश हैं- ईरान, पाकिस्तान, इंडिया और इराक। ईरान की आबादी 77 मिलियन है और शियाओं की आबादी 96 पर्सेंट है। इसका मतलब यह हुआ का दुनिया की एक तिहाई शिया आबादी ईरान में रहती है। दूसरी तरफ मिस्र, सऊदी अरब और जॉर्डन सुन्नी प्रभुत्व वाले देश हैं।
मिडल-ईस्ट के कई ऐसे देश हैं जिनमें शिया और सुन्नी होने के कारण दीवार लगातार चौड़ी हो रही है। यमन में 40 पर्सेंट से ज्यादा आबादी शिया है। लेबनान में भी 45 से 55 पर्सेंट आबादी शियाओं की है। जनसंख्या हमेशा सत्ता कंट्रोल की बुनियाद नहीं बनती है। सीरिया की बहुसंख्यक आबादी सुन्नी है जबकि सीरियन प्रेजिडेंट बशर अल-अशद और उनके दिवंगत पिता शिया इस्लाम से ताल्लुक रखते हैं। बहरीन का नेतृत्व सुन्नी है जबकि बहुसंख्यक आबादी शियाओं की है। इराक में भी शियाओं की आबादी ज्यादा है पर देश का शासक सद्दाम हुसैन सुन्नी था।
सुन्नी और शिया इस्लाम की व्याख्या अलग-अलग तरीके से करते हैं
शियाओं को सुन्नियों के बीच दरार की तुलना क्रिस्चन चर्च के बीच कैथलिक और प्रोटेस्टेंट से की जाती है। हालांकि यह अपूर्ण तुलना है लेकिन इस राह के आधार पर समझा जा सकता है। दोनों में एक ही स्थिति है कि एक ही धर्म में व्याख्या के आधार पर दो पंथों का जन्म हुआ। इसी तरह इन दोनों के तर्कों और सिद्धांतो में मतभेदों के कारण राजनीतिक हिंसा को जमीन मिली। शिया और सुन्नी दोनों कुरान को कबूल करते हैं। इसके साथ ही दोनों मोहम्मद पैगंबर के बारे में बुनियादी बातें सिखाते हैं। दोनों की परंपराएं भी एक हैं। दोनों रमजान में फास्टिंग रखते हैं। मक्का दोनों के लिए पवित्र स्थान है। हालांकि दोनों के बीच इस्लाम को फॉलो करने में में बुनियादी फर्क है। सुन्नी इस्लामिक स्क्रिप्चर की व्याख्या पर फोकस रहते हैं और उसी के आधार पर रुख करते हैं जबकि शिया धार्मिक नेताओं के मार्गदर्शन को फॉलो करते हैं।
shia sunni fight in muslim world