इस पहाड़ पर इंसान के साथ-साथ जानवरों के प्रवेश पर भी है पाबंदी Human & Animals Banned At This Holy Mountain Palan Gudhari
Narayanpur। जिला मुख्यालय से डेढ़ किमी पश्चिम में एक छोटी सी पहाड़ी है जिसे पलंग गुडरी के नाम से पुकारा जाता है। इस पहाड़ मे इंसानों और मवेशियों के प्रवेश पर पाबंदी है। पलंग डोंगरी में ग्रामीणों को पारद से लेकर लकड़ी काटने तक के लिए प्रवेश वर्जित किया गया है। कई दशकों से चली आ रही परंपरा को आज भी लोग मानते आ रहे हैं। इस पहाड़ी का आदिवासी समाज में काफी महत्व है।
गोंडी में इसे पोलंग मट्टा अर्थात दखल रहित पहाड़ कहा जाता है। पोलंग का अपभ्रंश पलंग और मट्टा का डोंगरी हो गया है इसलिये इसे प्रचलित नाम पलंग डोंगरी के नाम से भी जाना जाने लगा है। शिवकुमार पांडे ने बताया कि आदिवासी समाज मानता है कि पोलंग मटटा यानि दखल रहित पहाड़ देव मिलन स्थली है। यहां दुगाल परगना और अबुझमाड़ के जेटिन परगना के देवी-देवता आपस में मिलते हैं।
इसका कारण है कि इस पहाड़ी में आदिवासियों के आराध्य देव एवं दुगाल परगना के मंडादेव (बूढा देव) की पत्नी जैत मालो और जेटिन परगना के मंडादेव (वेसुर कौडो की पत्नी पुगांर मालो) विराजित हैं इसलिये इन देवियों के पुत्र-पुत्रियाँ और नाती इनसे मिलने आते हैं। वे आपस में सुख-दुख बांटते हैं। पांडे ने बताया कि ऐसे स्थान आदिवासी समाज के लिये बहुत महत्व रखते हैं।
जिस प्रकार हाट-बाजार में लोग अपने सगा सहोदर से मिलकर सुख- दुख बांटते हैं, उसी प्रकार ये देवी देवता भी यहां आपस में मिलकर अपने विवाद का निपटारा करते हैं। उन्होने बताया कि यहां की मान्यता के अनुसार इस स्थान में रावबाबा अपने पूर्ण विश्राम की स्थिति में विराजमान हैं इसलिये भी आदिवासी समाज इस पहाड़ी के प्रति अगाध श्रद्धा रखता है। रावबाबा आदिवासी समाज के और अन्य समाज के लोगों के रक्षक देव माने जाते हैं।
उनका यहां पूर्ण विश्राम की स्थिति में होने से इस पहाड़ी में किसी भी समाज का किसी प्रकार का दखल नहीं है। कारण रावबाबा एकाकी देव हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की दखलअंदाजी पसंद नहीं है। रावबाबा किसी भी ऊँचे स्थान में बैठकर चर चराचर की निगरानी करते हैं। वे समस्त क्षेत्रों में घोड़े पर चढ़कर विचरण करते हैं। प्रमाणस्वरूप घोड़े की जीन, बाबा की तलवार और धूप देने वाली आरती आज भी उनके विश्राम करने की जगह पर रखी हुई है।
गोंडी में इसे पोलंग मट्टा अर्थात दखल रहित पहाड़ कहा जाता है। पोलंग का अपभ्रंश पलंग और मट्टा का डोंगरी हो गया है इसलिये इसे प्रचलित नाम पलंग डोंगरी के नाम से भी जाना जाने लगा है। शिवकुमार पांडे ने बताया कि आदिवासी समाज मानता है कि पोलंग मटटा यानि दखल रहित पहाड़ देव मिलन स्थली है। यहां दुगाल परगना और अबुझमाड़ के जेटिन परगना के देवी-देवता आपस में मिलते हैं।
इसका कारण है कि इस पहाड़ी में आदिवासियों के आराध्य देव एवं दुगाल परगना के मंडादेव (बूढा देव) की पत्नी जैत मालो और जेटिन परगना के मंडादेव (वेसुर कौडो की पत्नी पुगांर मालो) विराजित हैं इसलिये इन देवियों के पुत्र-पुत्रियाँ और नाती इनसे मिलने आते हैं। वे आपस में सुख-दुख बांटते हैं। पांडे ने बताया कि ऐसे स्थान आदिवासी समाज के लिये बहुत महत्व रखते हैं।
जिस प्रकार हाट-बाजार में लोग अपने सगा सहोदर से मिलकर सुख- दुख बांटते हैं, उसी प्रकार ये देवी देवता भी यहां आपस में मिलकर अपने विवाद का निपटारा करते हैं। उन्होने बताया कि यहां की मान्यता के अनुसार इस स्थान में रावबाबा अपने पूर्ण विश्राम की स्थिति में विराजमान हैं इसलिये भी आदिवासी समाज इस पहाड़ी के प्रति अगाध श्रद्धा रखता है। रावबाबा आदिवासी समाज के और अन्य समाज के लोगों के रक्षक देव माने जाते हैं।
उनका यहां पूर्ण विश्राम की स्थिति में होने से इस पहाड़ी में किसी भी समाज का किसी प्रकार का दखल नहीं है। कारण रावबाबा एकाकी देव हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की दखलअंदाजी पसंद नहीं है। रावबाबा किसी भी ऊँचे स्थान में बैठकर चर चराचर की निगरानी करते हैं। वे समस्त क्षेत्रों में घोड़े पर चढ़कर विचरण करते हैं। प्रमाणस्वरूप घोड़े की जीन, बाबा की तलवार और धूप देने वाली आरती आज भी उनके विश्राम करने की जगह पर रखी हुई है।