सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद राष्ट्रपति से ज्यादा वेतन पा रहे FCI के विभागीय मजदूरों को हटाएगा केंद्र
शुक्रवार को सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर, जस्टिस ए एम खांविलकर और जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ की बेंच को बताया कि केंद्र सरकार ने एफसीआई डिपोज पर अनाज की बोरियां उतारने-चढ़ाने के लिए ठेका मजदूरों की दुबारा बहाली के लिए 6 जुलाई को अधिसूचना जारी कर दी।
साल 1970 में ठेका मजदूर एफसीआई डिपोज से हटा दिए गए थे। यानी, अब 46 साल के बाद उन्हें फिर से बहाल किया जाएगा। सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा कि सरकार धीरे-धीरे सभी विभागीय मजदूरों को हटा देगी। कोर्ट ने एक उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि एफसीआई के मजदूरों के लिए 1,800 करोड़ रुपये का सैलरी बिल अस्वीकार्य है। इस समिति ने यह भी कहा कि ऐसे 370 लखपति मजदूरों के अलावा कई और विभागीय मजदूर हैं जिनकी औसत सैलरी 80,000 रुपये है जबकि ठेका मजदूर भी वही काम सिर्फ 10,000 रुपये की मंथली सैलरी पर ही कर रहे हैं।
वहीं, एफसीआई की ओर से वकील विकास सिंह जंगरा ने कोर्ट को बताया कि एफसीआई को हरेक मजदूर पर हर महीने औसतन 80,000 रुपये की लागत आती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट बेंच ने पूछा, 'वे सिर्फ अनाज की बोरियां चढ़ाते-उतारते हैं। इसके लिए उन्हें इतना ज्यादा पैसे कैसे दिए जा रहे हैं जबकि इसी काम के लिए ठेका मजदूरों को सिर्फ 10,000 रुपये मिलते हैं? इसका मतलब है कि जरूर ऐसे कई लोगों होंगे जो अपना काम ठेका मजदूरों से करवा रहे हैं और बिना कुछ किए सैलरी उठा रहे हैं।'
कोर्ट का यह अनुमान सही निकला क्योंकि सरकार ने माना कि जो लोग लाखों की सैलरी उठा रहे हैं, वे खुद से काम नहीं करते बल्कि उन्होंने अपनी जगह ठेका मजदूरों को लगा रखा है। एफसीआई वर्कर्स यूनियन के वकील अमित सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि चूंकि ठेका मजदूरों को सैलरी नहीं दी जा सकती, इसलिए उनकी ओर से उन्हें रखने वाले विभागीय मजदूर गड़बड़झाला कर पूरी सैलरी उठा लेते हैं और इस तरह एक-एक विभागीय मजदूर मोटा वेतन ले रहे हैं।
15 नवंबर, 2014 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी इस सचाई को उजागर करने वाली एक स्टोरी के आधार पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने एफसीआई में चल रही इस 'लूट' का स्वतः संज्ञान लिया और कई निर्देश दिए। इनमें एफसीआई में लागू अनाप-शनाप इन्सेंटिव स्कीम को कम करना, मजूदरों की नौकरी ट्रांसफरेबल बनाना, डिपोज का खात्मा और चरणबद्ध तरीके से विभागीय मजदूरों का सिस्टम खत्म करना आदि शामिल हैं।
सिबल ने कहा कि विभागीय मजदूरों को हटाने के सरकारी फैसले में तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के अनुमानों के आधार पर किया जा रहा है। कोर्ट ने उन्हें कहा कि वर्कर्स यूनियन सरकार के आदेश को अलग से चुनौती दे सकती है। एफसीआई के लोग और एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह परंपरा (अत्यंत सस्ते ठेका मजदूरों से काम करवाकर पूरी सैलरी उठाने की परंपरा) बहुत गहरी जड़ जमा चुकी है। ऊंची सैलरी पाने वाले मजदूर अपना काम करवाने के लिए अक्सर 7,000 से 8,000 रुपये पर मजदूर रख लेते हैं।
FCI labours drawing salary of 4.5 Lac to 80 k per month. They do not work but hire 10k salary private Labour.