नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक बार फिर कामयाबी के झंडे को गाड़ने के लिए तैयार है। पहली बार एक ऐसी उड़ान भरने जा रहा है जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी। इसरो ‘स्पेस शटल’ के स्वदेशी स्वरूप (रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल- टेक्नोलॉजी डेमोनस्ट्रेटर, पुन: प्रयोग योग्य प्रक्षेपण यान- प्रौद्योगिकी प्रदर्शक यानी आरएलवी-टीडी) के पहले प्रक्षेपण के लिए तैयार है। यह पूरी तरह से स्वदेशी (मेड-इन-इंडिया) प्रयास है। एक एसयूवी वाहन के वजन और आकार वाले एक प्रक्षेपण यान को श्रीहरिकोटा में अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसके बाद प्रक्षेपण से पहले की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। बड़े देश एक द्रुतगामी और पुन: इस्तेमाल किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान के विचार को खारिज कर चुके हैं। लेकिन भारतीय इंजीनियरों का मानना है कि उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित करने की लागत को कम करने का उपाय यही है कि रॉकेट को रिसाइक्लिंग कर दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाया जाए। मानसून आने के पूर्व भर सकता है उड़ान सब कुछ ठीक रहा तो मानसून आने से पहले भारतीय अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल- टेक्नोलॉजी डेमोनस्ट्रेटर यानी आरएलवी-टीडी का प्रक्षेपण हो सकता है। यह पहला मौका होगा जब इसरो डेल्टा पंखों से लैस अंतरिक्षयान को प्रक्षेपित करेगा। प्रक्षेपण के बाद यह बंगाल की खाड़ी में लौट आएगा। 10 गुना कम हो सकती है प्रक्षेपण की लागत इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि रिसाइकिल प्रौद्योगिकी सफल होती है तो वे स्पेस में प्रक्षेपण की लागत को 10 गुना कम करके 2000 डॉलर प्रति किलो पर ला सकते हैं। यह है वैज्ञानिकों का उद्देश्य आरएलवी-टीडी को इस प्रयोग के दौरान समुद्र से बरामद नहीं किया जा सकता। ऐसी संभावना है कि पानी के संपर्क में आने पर यह वाहन बिखर जाएगा। क्योंकि इसकी डिजाइनिंग तैरने के अनुकूल नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रयोग का उद्देश्य इसे तैराना नहीं है। बल्कि उसका मकसद इसे उतारना और ध्वनि की गति से पांच गुना वेग पर एक तय पथ से बंगाल की खाड़ी में तट से लगभग 500 किलोमीटर पर उतारना है। छह गुना छोटा है आरएलवी-टीडी आकार-प्रकार में अमेरिकी स्पेस शटल से मेल खाने वाले जिस आरएलवी-टीडी का परीक्षण किया जा रहा है। वह अंतिम प्रारूप से लगभग छह गुना छोटा है। अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक के. सिवान ने कहा कि अंतिम प्रारूप को तैयार होने में कम से कम 10 से 15 साल का समय लगेगा क्योंकि पुन: प्रयोग योग्य मानव सहित रॉकेट को डिजाइन करना बच्चों का खेल नहीं है। Isro is launching ibdian space shuttle soon this year. |
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