नई दिल्ली
'HDFC बैंक को भारत से प्यार नहीं है और वह इसके प्रति सम्मान नहीं रखता है...' यह कड़ी टिप्पणी सर्वोच्च उपभोक्ता अदालत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान की है।कोर्ट ने कहा कि बैंक ने देश की प्रतिष्ठा का ख्याल न करते हुए विदेश में फंसे भारतीय जोड़े का डेबिट कार्ड ऐक्टिवेट नहीं किया।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग (NCDRC) ने इस मामले में भारतीय जोड़े को 5 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर भुगतान के निर्देश भी बैंक को दिए। यह जोड़ा साल 2008 में थाईलैंड और सिंगापुर में करीब 10 दिनों तक इसलिए फंसा रहा क्योंकि बैंक ने उनका डेबिट कार्ड ऐक्टिवेट नहीं किया।
मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठे का नेतृत्व कर रहे जस्टिस जे. एम. मलिक ने कहा, 'बैंक को भारत के प्रति कोई प्यार और सम्मान नहीं है। भारत की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया गया। यह अच्छी तरह से जानने के बाद कि भारतीय विदेश में फंसे हुए हैं उनका कर्तव्य बनता था कि इस मामले में तुरंत कार्यवाही की जाती, लेकिन उन्होंने इसमें 10 दिन का लंबा वक्त लिया। यह बैंक की लापरवाही, अकर्मण्यता और निष्क्रियता को दिखाता है। इसी तरह की प्रक्रियागत देरी के चलते विदेशी कारोबारी भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते नहीं रखना चाहते।'
कोर्ट ने जिला उपभोक्ता अदालत के फैसले का समर्थन करते हुए मुआवजे की राशि 50 हजार से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी। मामला 2008 का है जब चंडीगढ़ के रहने वाले ऐडवोकेट मोहिंदरजीत सिंह सेठी और उनकी पत्नी राजमोहिनी सेठी बैंक के लापरवाह रवैये के चलते थाइलैंड और सिंगापुर में करीब 10 दिनों तक फंसे रहे थे। इस मामले में जिला उपभोक्ता अदालत ने दंपत्ति के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन बैंक ने मुआवजा देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उन्होंने NCDRC में शिकायत की थी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि बैंक जिला उपभोक्ता अदालत के फैसले को लागू कर सकता था। वह आरोपी ब्रांच मैनेजर राजिंदर पाठेजा की सैलरी से मुआवजे की राशि की कटौती कर उसे पीड़ित दंपत्ति को दे सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। गौरतलब है कि बैंक ने दंपत्ति को खाता खुलवाने के दौरान भरोसा दिलाया था कि उन्हें दिए गए डेबिट कार्ड को लेकर विदेशों में कोई समस्या नहीं होगी, लेकिन जब उन्होंने बैंकॉक में इसका इस्तेमाल करना चाहा तो उन्हें पता चला कि कार्ड विदेश में ट्रांजैक्शंस के लिए ऐक्टिवेटेड नहीं है।