सुप्रीम कोर्ट ने एफसीआई (फू़ड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) में 370 मजदूरों को महीने में राष्ट्रपति की सैलरी से भी अधिक, यानी साढ़े 4 लाख रुपये पगार मिलने पर आश्चर्य जताया है। कोर्ट ने कहा है कि एफसीआई में 'काफी गड़बड़ियां' हैं। साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस आर भानुमति की बेंच ने कहा, 'एफसीआई के मजदूरों का इतिहास काफी हिंसक रहा है। अधिकारियों की हत्याएं हुई हैं। वहां कोई गिरोह काम कर रहा है और उनके लिए एफसीआई सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन गई है। एफसीआई को मजदूरों और यूनियनों ने बंधक बना लिया है और वहां निश्चित तौर पर बड़ी गड़बड़ है।'
यह बेंच बंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के आदेश के खिलाफ एफसीआई वर्कर्स यूनियन की अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र के लिए कुछ निर्देश पारित किए थे। बीजेपी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार की अध्यक्षता वाली कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।
बता दें कि बंबई हाई कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया में 15 नवंबर 2014 को छपी एक रिपोर्ट के आधार पर एफसीआई में जारी 'लूट' पर स्वत: संज्ञान लिया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस वक्त हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार करते हुए कहा, 'एफसीआई को सालाना 1800 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है, जबकि इसके विभागीय मजदूर अपने नाम पर दूसरों को काम पर लगाने में लगे हैं। यह कमिटी की रिपोर्ट से स्पष्ट है। यहां तक कि शांता कुमार की अध्यक्षता वाली कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 370 मजदूरों को हर महीने करीब साढ़े 4 लाख रुपये का वेतन मिल रहा है। उन्हें जितनी पेमेंट होनी चाहिए, यह उससे 1800 करोड़ रुपये अधिक है। एक मजदूर कैसे हर महीने 4.5 लाख रुपये की कमाई कर रहा है।' बेंच ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि कैसे कि इन मजदूरों की पगार आज भारत के राष्ट्रपति की पगार से भी अधिक है।
एफसीआई के वकील ने बेंच से कहा कि विभागीय कर्मचारियों को महीने में करीब एक लाख रुपये कमाने के लिए कई तरह के प्रोत्साहन मिलते हैं। इस पर पीठ ने पूछा, 'ये प्रोत्साहन योजनाएं क्या हैं? एफसीआई के लोगों पर अपने नाम पर दूसरों को काम पर रखने का आरोप है। यह एक तरह से काम को ठेके पर देना है।'
बेंच ने एफसीआई को चेतावनी दी कि अगर उच्च स्तरीय कमिटी की सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया गया तो उससे भी बड़े स्तर की कमिटी का गठन किया जाएगा।
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस आर भानुमति की बेंच ने कहा, 'एफसीआई के मजदूरों का इतिहास काफी हिंसक रहा है। अधिकारियों की हत्याएं हुई हैं। वहां कोई गिरोह काम कर रहा है और उनके लिए एफसीआई सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन गई है। एफसीआई को मजदूरों और यूनियनों ने बंधक बना लिया है और वहां निश्चित तौर पर बड़ी गड़बड़ है।'
यह बेंच बंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के आदेश के खिलाफ एफसीआई वर्कर्स यूनियन की अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र के लिए कुछ निर्देश पारित किए थे। बीजेपी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार की अध्यक्षता वाली कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।
बता दें कि बंबई हाई कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया में 15 नवंबर 2014 को छपी एक रिपोर्ट के आधार पर एफसीआई में जारी 'लूट' पर स्वत: संज्ञान लिया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस वक्त हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार करते हुए कहा, 'एफसीआई को सालाना 1800 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है, जबकि इसके विभागीय मजदूर अपने नाम पर दूसरों को काम पर लगाने में लगे हैं। यह कमिटी की रिपोर्ट से स्पष्ट है। यहां तक कि शांता कुमार की अध्यक्षता वाली कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 370 मजदूरों को हर महीने करीब साढ़े 4 लाख रुपये का वेतन मिल रहा है। उन्हें जितनी पेमेंट होनी चाहिए, यह उससे 1800 करोड़ रुपये अधिक है। एक मजदूर कैसे हर महीने 4.5 लाख रुपये की कमाई कर रहा है।' बेंच ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि कैसे कि इन मजदूरों की पगार आज भारत के राष्ट्रपति की पगार से भी अधिक है।
एफसीआई के वकील ने बेंच से कहा कि विभागीय कर्मचारियों को महीने में करीब एक लाख रुपये कमाने के लिए कई तरह के प्रोत्साहन मिलते हैं। इस पर पीठ ने पूछा, 'ये प्रोत्साहन योजनाएं क्या हैं? एफसीआई के लोगों पर अपने नाम पर दूसरों को काम पर रखने का आरोप है। यह एक तरह से काम को ठेके पर देना है।'
बेंच ने एफसीआई को चेतावनी दी कि अगर उच्च स्तरीय कमिटी की सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया गया तो उससे भी बड़े स्तर की कमिटी का गठन किया जाएगा।