आने वाले दिनों में दवाओं की कीमतों में तेजी से गिरावट आ सकती है क्योंकिसरकार द्वारा दवाओं पर कारोबारी मार्जिन की अधिकतम सीमा 35 प्रतिशत तय किए जाने की संभावना है। एक सरकारी अधिकारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केमिस्ट और थोक कारोबारी कुछ दवाओं पर 2000 से 3000 प्रतिशत तक ऊंचा मार्जिन वसूल रहे हैं। इसलिए खुदरा विक्रेताओं के लिए दवाओं की लागत तथा इनके बिक्री मूल्य में काफी अंतर है।
अधिकारी ने कहा, 'हम इसी नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस गड़बड़ मार्जिन पर लगाम लगाए जाने की जरूरत है। हमें कोई सीमा तय करनी होगी। अब हम इस पर विचार कर रहे हैं कि यह स्तर क्या होना चाहिए। औषधि विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ फार्मासूटिकल्स) के अधीन समिति ने यह मार्जिन सीमा 35 प्रतिशत तय करना प्रस्ताव किया है। हम इस पर भी विचार कर रहे हैं।'
कारोबारी मार्जिन वह मार्जिन होता है जो थोक विक्रेता और खुदरा विक्रेता दवाएं बेचकर कमाते हैं। सरकार ने पिछले साल औषधि विभाग में जॉइंट सेक्रटरी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इस समिति में प्रमुख उद्योग मंडलों, गैर सरकारी संगठनों, राष्ट्रीय दवा कीमत प्राधिकार एवं भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के सदस्य शामिल थे। समिति ने 35 प्रतिशत मार्जिन का सुझाव दिया है। सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने मेडिसिन डिपार्टमेंट से इस मुद्दे के समाधान को कहा था। जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची के दायरे में कुल 680 दवाएं आती हैं।