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केंद्र के कंट्रोल में ही Delhi Police के 'अच्छे दिन'?

Delhi Police Scared Of Kejriwal Working Style!

दिल्ली पुलिस पर कंट्रोल के लिए दिल्ली सरकार पुरजोर कोशिश कर रही है, लेकिन पुलिस दिल्ली सरकार के कंट्रोल में आने के लिए बिलकुल तैयार नहीं है। उसे केंद्र सरकार के मातहत रहना ही पसंद है। केंद्र सरकार दिल्ली पुलिस को किसी भी हालत में अपने कंट्रोल से बाहर देने के लिए तैयार नहीं है। आखिर इस त्रिकोण में झगड़े की वजह क्या है और पुलिस को हर सरकार अपने मातहत क्यों रखना चाहती है?

पुलिस से सबसे ज्यादा जुड़ी है पब्लिक
पुलिस अफसरों के मुताबिक, पुलिस की छवि नागरिकों की सेवा करने वाली फोर्स के बजाय नागरिकों को दबाने वाली शक्ति के रूप में बनना इसकी सबसे बड़ी वजह है। आम नागरिक के सामने सरकार से सबसे पहले वास्ता पुलिस के तौर ही पड़ता है। यही कारण है कि कोई भी सरकार पुलिस पर कंट्रोल से खुद को महरूम नहीं रखना चाहती। माहौल ऐसा बन चुका है कि सरकार के पास भले ही जनता के हित के लिए तमाम मंत्रालय और डिपार्टमेंट हों, लेकिन अगर पुलिस उसके पास नहीं हैं तो उसे आधा-अधूरा माना जाता है। केजरीवाल सरकार से पहले शीला दीक्षित सरकार के दौरान भी यह मसला उठता रहता था, जबकि उन दिनों दिल्ली और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकारें थीं।


'मनचाहे काम कराने के लिए चाहिए कंट्रोल'
दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड डीसीपी एल. एन. राव के मुताबिक, ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली सरकार पुलिस से मनचाहे काम कराने के मकसद से उस पर कंट्रोल करना चाहती है। उनके अनुसार अगर ऐसा हो गया तो दिल्ली में भी पुलिस की वही हालत हो जाएगी, जो दूसरे राज्यों में है। तब दिल्ली सरकार के मिनिस्टर और एमएलए एसएचओ पर दबाव बनाकर अपनी मनमर्जी करेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र के पास रहने में पुलिस की अपनी कोई मर्जी नहीं है। दूसरी ओर केंद्र सरकार पुलिस को अपने कंट्रोल में इसलिए रखती है, क्योंकि यहां महज लॉ एंड ऑर्डर और जांच का ही मामला नहीं है। इसकी वजह यह है कि यह देश की राजधानी है और राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा यहां दूसरे देशों के दूतावासों की सिक्यॉरिटी का भी मसला है।

पुलिस नहीं देती मंत्रियों-विधायकों को अहमियत
जमीनी हकीकत यह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार हो या कांग्रेस की, दिल्ली पुलिस के अफसर एमएलए तो क्या, मंत्री को भी कोई खास तवज्जो नहीं देते। कई एमएलए तो अपने इलाके के एसएचओ के बजाय बीट कॉन्स्टेबल को ही फोन करने में अपनी भलाई समझते हैं। पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती और मालवीय नगर में एसीपी के झगड़े के बाद पिछले साल केजरीवाल सीएम रहते रेल भवन पर धरना देकर बैठे रहे थे, लेकिन एसीपी को हटवा नहीं पाए थे। यही वजह है कि पुलिस पर कंट्रोल दोनों सरकारों के लिए ईगो और पावर का सवाल बना हुआ है।

कमिश्नर की राय, केंद्र का कंट्रोल पब्लिक के लिए अच्छा
पुलिस कमिश्नर बी. एस. बस्सी की निजी राय है कि दिल्ली पुलिस पर केंद्र सरकार का कंट्रोल दिल्ली वासियों के लिए खुशकिस्मती है, क्योंकि राजधानी की पुलिसिंग में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। इसके जवाब में केजरीवाल का बयान है कि पीएम के पास दिल्ली पुलिस के लिए वक्त नहीं है और इसीलिए पुलिस निरंकुश हो चुकी है। हालांकि फैक्ट यह है कि दिल्ली पुलिस के बॉस एलजी और केंद्रीय गृह मंत्री होते हैं और पीएम इसके मामलों में अमूमन सीधे दखल नहीं देते। एलजी और गृह मंत्री से मिलना आम आदमी के लिए संभव नहीं होता और बहुत से लोग केजरीवाल के इस आरोप से सहमत होंगे कि राजनीतिक कंट्रोल के बगैर दिल्ली पुलिस निरंकुश हो गई है।

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