Mumbai: Chinese Cemetery at Rustamji area of Wadala east of Mumbai suburb station where only Chinese dead bodies are allowed to bury . Only 2-3 bodies are buried in one year .This is historic cemetery of china nationals in India. Another such cemetery is also at any location at Calcutta/Kolkatta. No another nationals are allowed to bury at this cemetery. There is no power and securities at this cemetery due to lack of fund.
तीन ओर बांस और अन्य जंगली पेड़-पौधों से घिरा हुआ वडाला (पूर्व) के रुस्तमजी इलाके में स्थित एक कब्रिस्तान, जहां साल भर में एक या दो लाशें ही दफन होने के लिए लाई जाती हैं। दिलचस्प तो यह है कि ये लाशें भी किसी भारतीय की नहीं, बल्कि चीनियों की होती हैं जो देश के किसी भी कोने में मरे हों। उन्हें वडाला स्थित इसी भूतहा चीनी कब्रिस्तान में दफनाने के लिए लाया जाता है।
ऐसा ही एक और कब्रिस्तान कोलकाता में होने की बात कही जा रही है, जहां सिर्फ चीनी लोगों के शवों को ही दफनाए जाने की परमिशन है। हालांकि कब्रिस्तान में लगे दो शिलापट्ट पर अंग्रेजी और चीनी भाषा में कब्रिस्तान के बारे में जानकारी उकेरी हुई है, मगर कब्रिस्तान के केयरटेकर रफीक शाह (शाह के नाम से फेमस) की मानें तो उसमें से एक चीनी शिलापट्ट को कोई उखाड़ ले गया, जबकि मुख्य दरवाजे पर लगी पट्टिका में कब्रिस्तान की देख रेख महाराष्ट्र शासन के अधीन चीनी विभाग की जिम्मेदारी होने का सबूत दे रही है। कब्रिस्तान में पिछले साल एक चीनी का शव दफनाने के लिए लाया गया था।
ऐसा ही एक और कब्रिस्तान कोलकाता में होने की बात कही जा रही है, जहां सिर्फ चीनी लोगों के शवों को ही दफनाए जाने की परमिशन है। हालांकि कब्रिस्तान में लगे दो शिलापट्ट पर अंग्रेजी और चीनी भाषा में कब्रिस्तान के बारे में जानकारी उकेरी हुई है, मगर कब्रिस्तान के केयरटेकर रफीक शाह (शाह के नाम से फेमस) की मानें तो उसमें से एक चीनी शिलापट्ट को कोई उखाड़ ले गया, जबकि मुख्य दरवाजे पर लगी पट्टिका में कब्रिस्तान की देख रेख महाराष्ट्र शासन के अधीन चीनी विभाग की जिम्मेदारी होने का सबूत दे रही है। कब्रिस्तान में पिछले साल एक चीनी का शव दफनाने के लिए लाया गया था।
मुंबई यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के पूर्व एचओडी डॉ. अरविंद गणाचारी बताते हैं, 'वडाला और शिवडी में यूरोपियाई, चीन और जापान जैसे देशों के निवासियों के बसने का प्रमाण मिलता है। इस वजह से वहां कब्रिस्तान बने हैं जो पहले संबंधित देशों के अधीन थे। कालांतर में यह महाराष्ट्र सरकार के अंतर्गत संबंधित देशों के दूतावासों या विभागों के अधीन है जिसका सबूत कब्रिस्तान के दस्तावेज में दर्ज होगा। इसलिए अब ऐसी जगह ऐतिहासिक धरोहर है जिसकी रक्षा करना समाज और सरकार की जिम्मेदारी है।
परिवार के साथ कब्रिस्तान के पास रहने वाले केयरटेकर शाह बताते हैं कि यहां साल भर में एक या दो चीनी लोगों के शव दफनाने के लिए लाए जाते हैं। इस वजह से कब्रिस्तान खाली रहता है। यहां न तो बिजली है और न ही सुरक्षा। दिन-रात चरसी-गर्दुल्ले यहां अड्डा बनाए रखते हैं। आलम यह है कि कब्रिस्तान की जमीन को अब स्थानीय लोगों की मदद से बिल्डर लॉबी कब्जाने लगे हैं।