पता चल गया, शरीर में आत्मा आखिर कहां रहती है
तो मृत्यु जैसा अनुभव होता है
मृत्यु को बहुत करीब से महसूस करने वाले लोगों के अनुभव सुनकर विज्ञान फिलहाल इस नतीजे पर पहुंचा है कि आत्मा या जीवन का केंद्र मस्तिष्क के उस स्थान पर है रहता है जहां योग की भाषा में सहस्रार चक्र है।
यह चक्र सिर में उस जगह बताया जाता है, जहां लोग चोटी या शिखा रखते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक तंत्रिका प्रणाली से जब आत्मा का आभास कराने वाला क्वांटम पदार्थ कम होने लगता है तो मृत्यु जैसा अनुभव होता है।
यह चक्र सिर में उस जगह बताया जाता है, जहां लोग चोटी या शिखा रखते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक तंत्रिका प्रणाली से जब आत्मा का आभास कराने वाला क्वांटम पदार्थ कम होने लगता है तो मृत्यु जैसा अनुभव होता है।
दूसरे जन्म के लिए ब्रह्मांड में लीन हो जाती है
शास्त्रीय मान्यता के अऩुसार भी आत्मा मूलतः मस्तिष्क में निवास करती है। मृत्यु के बाद यहां से निकलकर दूसरे जन्म के लिए ब्रह्मांड में लीन हो जाती है, जैसे भीड़ में खो गई हो।
एरिजोना विश्वविद्यालय में एनेस्थिसियोलॉजी और मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर एमरेटस और वहीं रिसर्च विभाग निदेशक डॉ. स्टुवर्ट हेमेराफ के मुताबिक आत्मा के केंद्र का यह निष्कर्ष उस क्वांटम सिद्धांत की भी पुष्टि करता है, जो ब्रिटिश मनोविज्ञानी सर रोजर पेनरोस ने निरूपित किया है।
एरिजोना विश्वविद्यालय में एनेस्थिसियोलॉजी और मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर एमरेटस और वहीं रिसर्च विभाग निदेशक डॉ. स्टुवर्ट हेमेराफ के मुताबिक आत्मा के केंद्र का यह निष्कर्ष उस क्वांटम सिद्धांत की भी पुष्टि करता है, जो ब्रिटिश मनोविज्ञानी सर रोजर पेनरोस ने निरूपित किया है।
कोशिकाओं के अंदर बने ढांचों में आत्मा
माना जाता है कि मस्तिष्क में क्वांटम कंप्यूटर के लिए चेतना एक प्रोग्राम की तरह काम करती है। यह ब्रह्मांड में परिव्याप्त रहती है। इस सिद्धांत के अनुसार हमारी आत्मा का मूल स्थान मस्तिष्क की कोशिकाओं के अंदर बने ढांचों में होता है जिसे 'माइथाट्युब्स' कहते हैं।
दोनों वैज्ञानिकों ने तर्क दिया कि 'माइथाट्युब्स' पर पड़ने वाले क्वांटम गुरुत्वाकर्षण के कारण हमें चेतना का अनुभव होता है। इस सिद्धांत को आर्वेक्स्ट्रेड ऑब्जेक्टिव रिडक्शन (आर्च-ओर) का नाम दिया है।
दोनों वैज्ञानिकों ने तर्क दिया कि 'माइथाट्युब्स' पर पड़ने वाले क्वांटम गुरुत्वाकर्षण के कारण हमें चेतना का अनुभव होता है। इस सिद्धांत को आर्वेक्स्ट्रेड ऑब्जेक्टिव रिडक्शन (आर्च-ओर) का नाम दिया है।
काल के जन्म से ही व्याप्त थी आत्मा
इस सिद्धांत के अनुसार हमारी आत्मा मस्तिष्क में न्यूरॉन के बीच होने वाले संबंध से कहीं व्यापक है। दरअसल, इसका निर्माण उन्हीं तंतुओं से हुआ जिससे ब्रह्मांड बना था। यह आत्मा काल के जन्म से ही व्याप्त थी।
भारत में सदियों से पारंपरिक रूप से यह माना जाता रहा है कि आत्मा का अस्तित्व होता है और श्राद्ध पक्ष में उनका आह्वान भी किया जाता है।
भारत में सदियों से पारंपरिक रूप से यह माना जाता रहा है कि आत्मा का अस्तित्व होता है और श्राद्ध पक्ष में उनका आह्वान भी किया जाता है।